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२२० अप्पाणं सरणं गच्छामि
भीत से संबंधित है। भगवान महावीर तिर्यगभित्ति पर ध्यान करते थे। वे एक भीत के सामने बैठ जाते और घंटों तक उसे एकटक देखते रहते। यह अजीब-सा लगता है। पाना है आत्मा को, जानना है चैतन्य को और देखी जा रही है भीत। भीत को देखने से आत्मा कैसे मिलेगी? आत्म-साक्षात्कार कैसे होगा? आत्मा की साधना करने वाला भीत पर ध्यान एकाग्र कर रहा है। आत्मा की साधना करने वाला शव को देख रहा है। आत्मा की साधना करने वाला एक जर्जरित व्यक्ति को देख रहा है। आत्मा की साधना करने वाला एक पशु को देख रहा है, एक गंदगी के ढेर को देख रहा है। क्या संबंध है इन सब वस्तुओं का और आत्म-साक्षात्कार का? स्थूल दृष्टि से कोई संबंध नहीं लगता। किन्तु जिस व्यक्ति को देखना सीखना है, जानना सीखना है उसके लिए आत्मा में और अन्यान्य वस्तुओं में कोई अन्तर नहीं लगता। आत्मा एक तत्त्व है और भींत या शव भी एक तत्त्व है। आत्मा भी ज्ञेय है और अन्यान्य पदार्थ भी ज्ञेय हैं। आत्मा भी ध्येय है और अन्यान्य पदार्थ भी ध्येय हैं। देखने और जानने की शक्ति को बढ़ाने के लिए कोई आलंबन चाहिए। जिसने भींत को आलंबन बनाया, उस पर ध्यान केन्द्रित किया, तो धीरे-धीरे उसका ध्यान एकाग्र हुआ और तब उसके सामने अनेक नये रहस्य उद्घाटित होने लगे। तब आश्चर्य होता है कि जिस भींत को देखते-देखते अनेक वर्ष बीत गए, जिसको सैकड़ों बार देख लिया, कोई नयी बात उपलब्ध नहीं हुई और आज दस घंटा तक अपलक दृष्टि से देखने पर लगा कि भीत में प्रतिक्षण असंख्य परमाणु आ रहे हैं, जा रहे हैं, मानों कि भीत चल रही है, अचल नहीं है। भींत का कण-कण दरवाजा बना हुआ है। इस भींत में से सर्दी के, गर्मी के और बीमारी के परमाणु आ रहे हैं, जा रहे हैं। शब्दों के परमाणु आ-जा रहे हैं, चिन्तन के परमाणु आ-जा रहे हैं। तेजस
और विद्युत् के परमाणु तथा हमारे भोजन के परमाणु आ-जा रहे हैं। संसार में ऐसा कौन-सा सूक्ष्म परमाणु है जो इस भींत में से न आ-जा रहा हो। जब यह दृष्ट होगा तब भींत के स्वरूप की कल्पना ही बदल जाएगी। भीत भीत नहीं रहेगी, उसका अवरोधक रूप नहीं रहेगा। ज्ञात हो जाएगा कि भीत का कण-कण एक दरवाजा है जिसमें से सब कुछ सूक्ष्म आ-जा सकता है। यह तब होता है जब विचय-ध्यान की साधना होती है। विचय-ध्यान सिद्ध होने पर व्यक्ति जिस किसी पदार्थ-चेतन या अचेतन पर एकाग्र होगा तब उस पदार्थ के नये-नये पर्याय उद्घाटित होते जाएंगे। उसका स्वरूप बहुत स्पष्ट होता जाएगा। विचय ध्यान : निष्णातता का सूत्र
___ श्रीमज्जयाचार्य महामनीषी थे। उन्होंने आगमों का मंथन किया, दोहन किया और आगम की गहनतम गुत्थियों को सुलझाने में अपनी शक्ति का नियोजन किया।जीवन के अन्तिम समय में एक बार उन्होंने अपने उत्तराधिकारी
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