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२१८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
अन्तराय न हो। उस क्षमता को विकसित करने के लिए ही साधना की ये भूमिकाएं की गई हैं। क्षमता का विकास और आलंबन
उस क्षमता को विकसित करने के लिए अनेक आलंबन लिये जाते हैं। श्वास का आलंबन, स्थिरता का आलंबन, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर का
आलंबन, अतिसूक्ष्म शरीर का आलंबन-ये सारे आलंबन उस क्षमता को विकसित करने के लिए हैं। आलंबन गति में सहायक होते हैं। आलंबनों के आधार पर आदमी बीहड़ पथ को भी पार कर जाता है। आदमी ऊंचे पहाड़ों और भीषण नदियों को आलंबनों के सहारे पार कर जाता है। देखने और जानने के बीच में अनेक पर्वत हैं, अनेक नदियां हैं। उन्हें आलंबनों के सहारे ही पार किया जा सकता है। जब साधक देखने और जानने के लिए बैठता है तब स्मृति
की महानदी बीच में आ जाती है। वह भयंकर रूप से उफनती है। उसे पार किए बिना कोई केवल देख या जान नहीं सकता। स्मृतियां उभरती हैं, जानना
और देखना छूट जाता है। आदमी उन स्मृतियों की महानदी में डूब जाता है। वह स्मृतियों में उलझ जाता है। स्मृतियां न आएं, वे बाधक न बनें-यह आलंबन के द्वारा ही संभव हो सकता है, अन्यथा आदमी स्मृतियों के तूफान से बच नहीं सकता।
दूसरी महानदी है-कल्पना। आदमी देखने-जानने के लिए प्रयत्न करता है, पर कल्पनाएं उसे भटका देती हैं। एक के बाद दूसरी कल्पनाओं का तांता लग जाता है और आदमी कल्पना के इस जाल को तोड़ नहीं पाता। कल्पनाएं आती हैं, विकल्प उभरते हैं और देखना-जानना छूट जाता है।
शेखचिल्ली की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। वह कोई एक व्यक्ति रहा होगा। आज तो सारे लोग शेखचिल्ली बन रहे हैं, कल्पनाओं के महल खड़े कर रहे हैं। जानते हैं, कल्पनाओं से कुछ भी आना-जाना नहीं है, पर वे इस मायाजाल से छूट नहीं पाते।
चिंतन भी एक महानदी है। उसका पार पाना भी सहज नहीं है। मस्तिष्क में जब विचारों का ज्वार आता है तब न जाने क्या-क्या घटित हो जाता है। निर्विचार रहना कठिन बात है। लंबे समय तक निर्विचार रहना कठिन भी है और जीवन-यात्रा के लिए संभव भी नहीं है।
केवल देखने और केवल जानने में स्मृति, कल्पना और चिन्तन-ये तीन विघ्न हैं। आलंबनों के सहारे इन विघ्नों को मिटाया जा सकता है। विचय-ध्यान
दर्शन और ज्ञान की क्षमता को बढ़ाने के लिए सबसे बड़ा आलंबन है-विचय ध्यान। विचय का अर्थ है-खोजना, अन्वेषण करना, विमर्श करना। For Private & Personal Use Only
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