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२३. चित्त-शुद्धि और समाधि
प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति केवल-दर्शन और केवल-ज्ञान की पद्धति है। केवल देखना है और केवल जानना है। केवल देखना हो, उसके साथ कोई प्रियता और अप्रियता का संवेदन न हो। केवल जानना हो, उसके साथ कोई प्रियता और अप्रियता का संवेदन न हो, राग-द्वेष की कोई ऊर्मि या तरंग न हो । दर्शन भी निस्तरंग हो और ज्ञान भी निस्तरंग हो । चेतना का शान्त समुद्र है-प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति।
आत्मा का स्वभाव है-दर्शन और ज्ञान, देखना और जानना। साधना की पद्धति वही हो सकती है जो आत्मा का स्वभाव है। आत्मा को उपलब्ध होना समाधि है, इसलिए समाधि की पद्धति वही हो सकती है जो आत्मा का स्वभाव है। आत्मा के स्वभाव से हटकर उसे उपलब्ध करने की कोई पद्धति नहीं हो सकती। आत्मा का जो स्वभाव नहीं है, उस स्वभाव से विपरीत पद्धति का प्रयोग कर हम आत्मा को उपलब्ध नहीं हो सकते। हमें समाधि उपलब्ध नहीं हो सकती, कुछ और ही उपलब्ध हो सकता है। जब साध्य और साधन एक होता है तब प्राप्तव्य प्राप्त होता है। साध्य और साधन में दूरी नहीं होनी चाहिए। हमारा साध्य है-अनावृत चैतन्य की उपलब्धि, निर्बाध आनन्द की उपलब्धि और अप्रतिहत शक्ति की उपलब्धि । जब साध्य है-चैतन्य, आनन्द और शक्ति तो उसकी प्राप्ति का साधन भी चैतन्यमय, आनन्दमय और शक्तिमय ही हो सकता है। दूसरा कोई साधन नहीं बन सकता।
पत्नी ने पति से कहा-बच्चों को संभालो। मैं डॉक्टर के पास जा रही हूं। दांतों में भयंकर दर्द है। दांत निकलवाने हैं। पति बोला-बच्चों का झंझट मुझसे नहीं हो सकता। बच्चों को तुम संभालो। मैं डॉक्टर के पास जाकर अपने दांत निकलवा लेता हूं। ___दांत का दर्द किसी के है और निकलवाने कोई दूसरा जा रहा है-यह कैसे होगा? इससे क्या बनेगा? समाधि की उपलब्धि
चैतन्य की उपलब्धि चैतन्य ही करा सकता है। जो व्यक्ति चैतन्य की आराधना करता है वही चैतन्य को उपलब्ध हो सकता है। आनन्द को वही व्यक्ति उपलब्ध हो सकता है जो आनन्द की समुपासना करता है। शक्ति की संप्राप्ति उसी को होती है जो शक्ति की आराधना करता है। चैतन्य, आनन्द
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