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केवल-ज्ञान की साधना २१५
प्रेक्षा-ध्यान द्वारा जैसे-जैसे देखने और जानने का अभ्यास बढ़ता है, वैसे-वैसे राग-द्वेषमुक्त क्षण जीने का विकास होता है और एक दिन जीवन में इतनी जागरूकता आती है कि आदमी जीवन-यात्रा को चलाते हुए भी, व्यवहार की भूमिका पर करणीय कार्य करते हुए भी अच्छे साधक का जीवन जी सकता
है।
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