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________________ २१४ अप्पाणं सरणं गच्छामि विकल्प है। यह निर्णय करो कि यह विकल्प जीवन की आवश्यकता और उपयोगिता के सन्दर्भ में उठा है या और किसी कारण से। जब यह लगे कि इस विकल्प के पीछे दूसरी प्रेरणाएं नहीं हैं, केवल जीवन-यात्रा के निर्वाह की प्रेरणा है, तब उस विकल्प का समाधान करना होता है, उसका उत्तर देना आवश्यक होता है। जब यह लगे कि ये विकल्प राग आदि तरंगों के कारण उत्पन्न हुए हैं तब उन विकल्पों का उत्तर मत दो, उनका शमन करो, उनकी उपेक्षा करो। उन्हें दबाओ मत, असहयोग करो। या तो निर्विकल्प-चेतना की स्थिति में चले जाओ, जिससे कि विकल्प अपने आप शान्त हो जाएं, या राग-द्वेषमुक्त चेतना की स्थिति में चले जाओ, जिससे कि एक विकल्प के सामने दूसरा विकल्प खड़ा हो जाए और वह पहला विकल्प शक्तिशून्य बन जाए। यह अन्यान्य विकल्पों के सामने राग-द्वेषमुक्त विकल्प खड़ा करने की साधना ही केवल-ज्ञान की साधना है। राग-द्वेषमुक्त चेतना का क्षण केवल-ज्ञान की साधना कठिन साधना नहीं है। यह कठोर तपस्या या शरीर सुखाने की साधना नहीं है। आदमी इसका आचरण न कर सके, ऐसी साधना नहीं है। केवल-ज्ञान की साधना-पद्धति और केवल-दर्शन की साधना-पद्धति कुछेक लोगों के जीवन की पद्धति नहीं है, यह समूचे समाज के लिए उपयोगी हमारी कोई भी प्रवृत्ति राग-द्वेषमुक्त होती है, वह प्रवृत्ति है अहिंसा, वह प्रवृत्ति है सत्य, वह प्रवृत्ति है अचौर्य, वह प्रवृत्ति है ब्रह्मचर्य और वह प्रवृत्ति है अपरिग्रह। अहिंसा और ध्यान में कोई अन्तर नहीं है। अहिंसा और समाधि में कोई अन्तर नहीं है। ज्ञान और समाधि में कोई अन्तर नहीं है। जब-जब जिस क्षण में राग-द्वेषमुक्त चेतना जागती है, वह अहिंसा है, ध्यान है, समाधि है। इसीलिए एक घंटा आंखें बंद कर, कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठना ही समाधि या ध्यान नहीं है। यदि सम्यक् चेतना जाग जाए तो समाधि की साधना पूरे दिन हो सकती है। इसीलिए यह जीवन की पद्धति बन सकती है। किसी भी कालबद्ध, देशबद्ध और सीमाबद्ध साधना-पद्धति को जीवन की पद्धति नहीं बनाया जा सकता। किन्तु प्रतिक्षण हर देश और काल में जो अप्रमाद का भाव जागता है, जागरूकता आती है, राग-द्वेषमुक्त क्षण जीने की एक अभ्यास-विधि बन जाती है तो वह सारी समाधि की साधना है। इसीलिए समाधि की साधना समग्र जीवन की साधना है। समाधि की साधना सामाजिक पद्धति में जीने वाले व्यक्ति की जीवन-पद्धति है। इस समग्रता को हम खंडों में न बांटें। समग्रता की दृष्टि से इसका उपयोग करें। इसमें केवल एक ही शर्त है कि जागरूकता प्रतिक्षण रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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