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________________ केवल-ज्ञान की साधना २१३ अनेक पद्धतियां हैं। उनकी कोई सूची नहीं बनाई जा सकती। जिसका मन जिस पद्धति में लग जाए वही उसके लिए अच्छी है। किन्तु एक शर्त है कि वह साधना-पद्धति केवल-दर्शन और केवल-ज्ञान की सीमा से परे न जाए। जो साधना होगी, वह इस सीमा में ही होगी। इससे परे नहीं हो सकती। - प्रेक्षा-ध्यान में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का बहुत महत्त्व है, विनम्रता और इन्द्रिय-संयम का बहुत महत्त्व है। इन सबमें एक तत्त्व काम करता है और वह है राग-द्वेषमुक्त विकल्प। जीवन-यात्रा चलाने वाला आदमी निरन्तर निर्विकल्प नहीं रह सकता। जो निरन्तर निर्विकल्प रहना चाहता है उसे जीवन-यात्रा शीघ्र सम्पन्न करनी होती है। मन का जाना मुनि विहार कर जा रहे थे। रास्ता लम्बा था। वे रास्ता भूल गए। खेत में एक किसान खड़ा था। मुनि ने पूछा-रास्ता कौन-सा जाएगा? रास्ता बताने वाले को भी रास्ता पूछना पड़ता है। किसान आया। उसने रास्ता बता दिया। मुनि ने सोचा-इसे भी मोक्ष का रास्ता बताना चाहिए। मुनि ने किसान से कहा-'क्या करते हो?' 'खेती करता हूं।' 'क्या कुछ व्रत-नियम भी निभाते हो?' 'नहीं, मुझे कुछ नहीं आता।' 'कुछ त्याग-प्रत्याख्यान लो।' 'मुझे कोई एक संकल्प करा दो। मैं दो-चार संकल्प नहीं ले सकता।' मुनि बोले-'केवल एक संकल्प। अपने मन की बात न करना। मन जैसा कहे वैसा न करना। किसान बोला-'अच्छी बात है। यह संकल्प है। मैं अपने मन के अनुसार कुछ नहीं करूंगा।' मुनि चले गए। किसान ने सोचा-खेत में जाऊं। फिर सोचा-अरे! यह तो मन का जाना हो गया, कैसे जाऊं? खड़ा रहा। पत्नी घर से भोजन लेकर आयी। किसान खेत के बाहर ही खड़ा था। पत्नी ने बुलाया। वह कैसे बोलता? मन का जाना हो जाता । वह नहीं बोला। खड़ा रहा। बैठ भी नहीं सका । क्योंकि वह भी मन का जाना हो जाता। लम्बे समय तक खड़ा रहना पड़ा। उसकी जीवन-यात्रा समाप्त हो गई। दोनों साथ-साथ निर्विकल्प चेतना और जीवन-यात्रा दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। जीवन-यात्रा के लिए विकल्प जरूरी है। विकल्प जरूरी है तो साधना क्यों? यही तो एक महत्त्वपूर्ण खोज है कि जीवन की यात्रा भी चले, विकल्प भी चले और साधना भी चले। केवल-ज्ञान की साधना का अर्थ है-मन में विकल्प उठे तो उनका उत्तर मत दो। पहले निर्णय करो कि यह राग से उत्पन्न विकल्प है या द्वेष से उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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