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२१० अप्पाणं सरणं गच्छामि
बैठा आदमी जितना बड़ा पाप कर सकता है, गांव में रहने वाला उतना बड़ा पाप नहीं कर सकता। गांव में रहने वाला व्यक्ति जितना बड़ा साधक हो सकता है, उतना बड़ा साधक जंगल में रहने वाला नहीं भी हो सकता । साधना अकेले में ही होती है, साधना समूह में ही होती है - यह भेद - रेखा नहीं खींची जा सकती । साधना अकेले में नहीं हो सकती । साधना समूह में नहीं हो सकती । साधना अकेले में भी हो सकती है और साधना समूह में भी हो सकती है ।
ध्यान और समाधि की साधना तब होती है जब विकल्प की सारी तरंगें समाप्त हो जाती हैं । जब तक ये तरंगें मस्तिष्क में उत्पन्न होती रहती हैं, तब तक साधना नहीं हो सकती, फिर चाहे साधक अकेला रहे या समूह में रहे, गांव में रहे या जंगल में रहे। जब ये तरंगें समाप्त हो जाती हैं तब साधना घटित होती है, फिर चाहे साधक अकेला रहे या समूह में रहे, गांव में रहे या जंगल में रहे।
तरंगों का पिण्डः मस्तिष्क
मनुष्य के मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की तरंगें उठती ही रहती हैं। कभी क्रोध की तरंग उठती हैं तो कभी मान और माया की तरंग उठती हैं। कभी लोभ की तरंग उठती है तो कभी ईर्ष्या और घृणा की तरंग उठती है । अनन्त तरंगें हैं । मस्तिष्क सदा इन तरंगों से आक्रान्त रहता है । इन तरंगों से व्यक्ति ही प्रभावित नहीं होता, आसपास का क्षेत्र भी प्रभावित होता है । मनुष्य के मस्तिष्क को सागर से उपमित किया जा सकता है। जब समुद्र में तूफान आता है तब पचासों मील का क्षेत्र जलमग्न हो जाता है। वैसे ही जब मस्तिष्क में विकल्पों का तूफान आता है तब न जाने कितनी दूर के क्षेत्र के लोग प्रभावित होते हैं । मस्तिष्क में क्रोध का तूफान उठता है और युद्ध घटित हो जाता है, नर-संहार घटित हो जाता है । मस्तिष्क में अहं का तूफान उठता है, अहं की चेतना जागती है तब सारा संसार उसके लिए छोटा बन जाता है । 'मैं' बड़ा हो जाता है
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गाड़ी के नीचे चलने वाला कुत्ता सोचता है कि गाड़ी का सारा भार उसी पर है। किसी पर किसी का भार नहीं है । केवल भ्रम ही भ्रम है। आदमी सोचता है- - घर का सारा भार मेरे पर है, मेरे सहारे सारा काम चल रहा है। उसके चले जाने पर भी घर का काम चलता है । कोई चला जाए, दुनिया चलती रहेगी। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। अहंकार करने वाले सारे चले गए, पर दुनिया आज भी चल रही है, चलती रहेगी। यह किसी एक के आधार पर नहीं चलती, नहीं रुकती । यह चलती ही रहती है, कोई आए, कोई जाए । किन्तु मनुष्य में एक अहंकार होता है । वह सोचता है, सारा दायित्व मुझ पर है। अगर मैं न होऊं तो न जाने क्या हो जाएगा। ऐसा सोचने वाले सब चले गए, पर कुछ
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