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केवल-ज्ञान की साधना २०६
विकल्प होता है वहां सारे खतरे पैदा होते हैं।
प्रेक्षा-ध्यान की साधना का अर्थ है-निर्विकल्प चेतना की साधना। प्रेक्षा-ध्यान की साधना का अर्थ है-विकल्पशून्य चेतना की साधना । प्रेक्षा-ध्यान की साधना का अर्थ है-दर्शन की साधना, केवल-दर्शन की साधना।
क्या केवल-ज्ञान की साधना हमारा साध्य नहीं है? केवल-ज्ञान की साधना हमारा साध्य है। जैसे केवल-दर्शन की साधना एक मूल्यवान् तत्त्व है, वैसे ही केवल-ज्ञान की साधना भी एक मूल्यवान् तत्त्व है। किन्तु राग और द्वेष के विकल्प से मिली हुई ज्ञान की साधना हमारे लिए व्यर्थ है। एक प्रश्न है कि हम ध्यान और समाधि का अभ्यास करते हैं, किन्तु क्या जीवन के साथ इसकी कोई संगति है? एक घंटा ध्यान किया, एक घंटा समाधि का अभ्यास किया
और शेष समय जीवन-यात्रा को चलाने में बिताया तो उस साधना और जीवन-यात्रा के ज्ञापन के तरीकों में कोई सामंजस्य है? लोग कहते हैं-इनमें कोई संगति नहीं है। इसलिए सोचा जाता है कि साधना करने वालों को जंगल में चला जाना चाहिए या साधना का स्वांग समाप्त कर देना चाहिए। दोनों में सामंजस्य है ही नहीं। कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि जैन-साधना पद्धति इतनी कठोर और श्रम-साध्य है कि प्रत्येक व्यक्ति इस साधना में नहीं लग सकता।
यह भी एक भ्रान्ति है। साधना कभी दुःसाध्य नहीं होती। अगर साधना दुःसाध्य हो, कुछेक व्यक्ति ही उसे कर पाते हों तो वह हमारी धरती की बात नहीं हो सकती। आकाश या पाताल की बात हो सकती है। यदि वह आकाश की बात है तो आकाश में रहने वालों के लिए उपयोगी हो सकती है। यदि वह पाताल की बात है तो पातल में रहने वालों के लिए उपयोगी हो सकती है। हम धरती पर जी रहे हैं, इस मिट्टी पर जी रहे हैं। हम आकाश की पद्धति को महत्त्व नहीं दे सकते। वह जीवन-पद्धति कभी नहीं बन सकती। यदि साधना हमारे जीवन की पद्धति नहीं बनती और कुछ लोगों के लिए ही होती है तो जंगल में जाकर गुफाओं में बैठने वाले ही उससे लाभान्वित हो सकते हैं। वे सारे संपर्कों को तोड़कर अकेला जीवन जीते हैं। ऐसी साधना का मूल्य बहुत सीमित होगा। साधना कहां? कब?
सामाजिक स्तर पर साधना का प्रयोग जैन आचार्यों की देन है। भगवान महावीर ने कहा-'साधना गांव में भी हो सकती है। साधना जंगल में भी हो सकती है। साधना गांव में भी नहीं हो सकती। साधना जंगल में भी नहीं हो सकती।' हम यह सीमा नहीं कर सकते कि जंगल में साधना हो सकती है और गांव में नहीं हो सकती। यह सीमा-रेखा कभी नहीं बन सकती। जंगल में अकेला
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