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________________ २०८ अप्पाणं सरणं गच्छामि में परिणत हो जाता है, अपना परिणमन कर लेता है। जितने पदार्थ के आकार, उतने ही ज्ञान के आकार; जितने ज्ञेय के विकल्प, उतने ही ज्ञान के विकल्प। ज्ञान हमारी साकार चेतना है। दर्शन को चेतना के अतिरिक्त किसी के साथ सम्पर्क करने की जरूरत नहीं होती। वह केवल अस्तित्व है' के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है। दर्शन के जगत् में कोई भाषा नहीं होती, कोई शब्द नहीं होता, कोई विकल्प नहीं होता, कोई सम्पर्क नहीं होता। ज्ञान के जगत् में भाषा है, शब्द है, विकल्प है और सम्पर्क है। दर्शन के बच्चे को कोई खतरा नहीं, क्योंकि वह घर में ही रहता है। ज्ञान के बच्चे को बहुत बड़ा खतरा रहता है, क्योंकि वह घर से बाहर रहता है, सड़कों पर खेलता रहता है। वह कहीं का कहीं चला जाता है। वह दुनिया के हर कोने में चला जाता है और पदार्थ की प्रत्येक पर्याय पर जाना चाहता है। जो बाहर जाएगा, वह फैलेगा, वह विस्तार करेगा। उसके लिए भाषा का माध्यम आवश्यक होगा। ज्ञान ने भाषा का सहारा लिया। उसकी अभिव्यक्ति हुई। दर्शन कोई अभिव्यक्ति नहीं करता। ज्ञान ने अभिव्यक्त होकर अपना स्वरूप प्रकट किया। वह दूसरों के समक्ष आया। साकार : अनाकार ___भारतीय साधना-पद्धति में साकार और अनाकार की बहुत चर्चाएं मिलती हैं। आत्मा के दो रूप हैं। एक रूप है अंजन और एक रूप है निरंजन। अंजन का अर्थ है-अभिव्यक्ति। निरंजन का अर्थ है-अनभिव्यक्ति, कोई अभिव्यक्ति नहीं। साकार का एक आकार होता है। अनाकार का कोई आकार नहीं होता, अवगाहन नहीं होता। ज्ञान ने भाषा के साथ सम्पर्क स्थापित किया। शब्द जुड़ गए। शब्दों के साथ विकल्प जुड़े। विकल्पों ने उसे आकार दिया। ज्ञान पदार्थ को जानने के लिए प्रवृत्त हुआ, किन्तुं साथ-साथ पदार्थ से जुड़ गया। जब वह पदार्थ से जुड़ा तो वह कोरा ज्ञान नहीं रहा। वह ज्ञेय को जानने के साथ-साथ ज्ञेय के आकार का बन गया। वह पदार्थाकार और ज्ञेयाकार बन गया। वह केवल जानने तक सीमित नहीं रहा। उसका विकल्प केवल विकल्प नहीं रहा। वह राग का विकल्प बन गया। वह द्वेष का विकल्प बन गया। पदार्थ के साथ सम्पर्क होते ही उसमें ममत्व जागता है, अहंकार जागता है, राग और द्वेष जागता है, प्रियता और अप्रियता का भाव जागता है। वह कोरा ज्ञान नहीं रहता, कुछ और बन जाता है। वह प्रदूषित और जहरीला बन जाता है। विकल्प : निर्विकल्प दर्शन की सीमा निर्विकल्पता की सीमा है। वह निर्विकल्प चेतना का क्षेत्र है। ज्ञान विकल्प चेतना का क्षेत्र है। निर्विकल्प में कोई खतरा नहीं होता। जहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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