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१६८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
है और धड़कने के साथ-साथ एक क्षण विश्राम लेता है । प्रत्येक धड़कन के अन्तराल में एक विश्राम होता है । धड़कता है, विश्राम लेता है । फिर धड़कता है, फिर विश्राम लेता है । यह विश्राम लेता है इसीलिए धड़कता है । यदि यह विश्राम बन्द हो जाये, धड़कन निरन्तर हो जाये, अन्तराल कोई न रहे, तो हृदय की गति हो नहीं सकती । शक्ति का रहस्य है-गति और विश्राम । चलना और विश्राम करना, फैलना और सिकुड़ना यह गति का सूत्र है । हठयोग के आचार्य
एक प्रयोग की खोज की। उसका नाम है अश्विनी - मुद्रा । घोड़े को देखकर उन्होंने एक खोज की। आज का विज्ञान भी शक्ति का माप घोड़े से करता है - अश्व-शक्ति । घोड़े में शक्ति कहां से आती है? घोड़े का जो गुदा का भाग है वह सिकुड़ता है और फैलता है, सिकुड़ता है और फैलता है । वह उसकी शक्ति का रहस्य है । इस आधार पर हठयोग के आचार्यों ने अश्विनी - मुद्रा की खोज की। अश्विनी - मुद्रा का मतलब है-गुदा के भाग को सिकोड़ना और फैलाना, सिकोड़ना और फैलाना । इससे अधिक शक्ति पैदा होती है । शक्ति का रहस्य है सिकोड़ना और फैलाना । निरन्तर कोई फैलता है और गति करता है, सिकोड़ना नहीं जानता, वह टूट जाता है, शक्ति का संचय नहीं कर पाता । शक्ति-संचय के लिए ये दोनों बातें जरूरी हैं । चेतना की शक्ति का भी यही रहस्य है । चेतना की शक्ति का यही सूत्र है । वह फैलती है, सिकुड़ती है, फिर फैलती है, फिर सिकुड़ती है | चेतना के विस्तार का नाम है-ज्ञान और चेतना के सिकुड़ने का, स्वकेन्द्रित होने का नाम है - दर्शन । जब चेतना सिकुड़ती है, तो दर्शन होता है। चेतना फैलती है, तो वह ज्ञान बन जाती है। एक ही चेतना की दो अवस्थाओं के दो नाम हैं । सिकुड़ने का नाम है-दर्शन और फैलने का नाम है - ज्ञान ।
ज्ञान चेतना : दर्शन चेतना
चेतना चेतना है । वह ज्ञान को पैदा करती है। दर्शन ज्ञान को जन्म देता है । दर्शन से ज्ञान उत्पन्न होता है। दर्शन होता है तब ज्ञान होता है। यदि दर्शन न हो, ज्ञान नहीं हो सकता । सबसे पहले हमारी चेतना का व्यापार दर्शन होता है। आदमी चलता है। सामने कोई दूसरा आदमी आता है, सबसे पहले देखता है । देखने के बाद मन में फिर विकल्प उठता है । पहले कोई विकल्प नहीं होता। पहले केवल देखता है। ध्यान से देखता है, फिर विकल्प पैदा होते हैं । वस्तु को देखें, किसी व्यक्ति को देखें या किसी घटना को देखें, किसी को भी देखें, पहले विचारशून्यता की अवस्था होगी, फिर विकल्प-दशा होगी। देखने के बाद फिर विकल्प चालू होते हैं । फिर विकल्पों का तांता लगता है। यह कौन है? आदमी है। कहां का है? वेश-भूषा कैसी है? कहां से आया है? क्या इससे बात करें ? संपर्क स्थापित करें ? नाना प्रकार के विकल्प पैदा होते हैं और विकल्पों
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