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केवल-दर्शन की साधना १६६
का जाल बिछ जाता है। यह सब दर्शन के पश्चात् होते हैं। पहले केवल दर्शन होता है। हम प्रेक्षा को इतना मूल्य क्यों देना चाहते हैं? प्रेक्षा का मूल्य क्यों है? इसलिए कि हमारी सारी समस्याएं ज्ञान के द्वारा उत्पन्न होती हैं। यदि हम समस्याओं का समाधान चाहते हैं, तो हमें दर्शन की भूमिका पर भी जाना होगा। हमारी सारी कठिनाइयां ज्ञान के द्वारा उत्पन्न होती हैं। हम उन कठिनाइयों को समाप्त करना चाहें, तो हमें दर्शन की भूमिका पर जाना होगा। हमारे सारे मानसिक तनाव ज्ञान के द्वारा उत्पन्न होते हैं। यदि हम मानसिक तनावों से बचना चाहते हैं, तो हमें दर्शन की भूमिका पर जाना होगा। हमारी शक्तियां बहुत क्षीण होती हैं। यदि हम शीक्तयों को सुरक्षित रखना चाहते हैं, संचित रखना चाहते हैं, शक्ति-संचय को समाप्त करना नहीं चाहते तो हमें दर्शन की भूमिका पर जाना होगा। दर्शन में केवल अस्तित्व हमारे सामने होता है, कोरा अस्तित्व । जहां कोरा अस्तित्व होता है वहां शक्ति का व्यय नहीं होता। ज्ञान में अस्तित्व गौण हो जाता है और विकल्प प्रधान बन जाता है। वहां मन की शक्ति खर्च होती है, वाणी की शक्ति खर्च होती है, शरीर की शक्ति खर्च होती है और नाड़ी-संस्थान की शक्तियां खर्च होती हैं। शक्ति-व्यय को रोकने के लिए ज्ञान की भूमिका से हटकर दर्शन की भूमिका में जाने की कला हमें सीखनी होगी। प्रयोजन का मूल्य
मालवीयजी एक धनपति के पास गए। बड़ा धनपति था।धनपति ने सत्कार किया, पंडित मदनमोहन मालवीय घर पर आए हैं, बड़ा सम्मान किया। पास में बैठाया। देखते हैं कि बच्चा खेल रहा है। दियासलाई की पेटी हाथ में है। एक दियासलाई निकलता है, जलाता है और एक लकड़ी को जला देता है। सेठ ने बीच में ही उठकर बच्चे को एक चांटा मार दिया। अपना लड़का, प्यारा लड़का। सेठ फिर आकर बैठ गया। मालवीयजी बोले-'अब मैं जा रहा हूं।' सेठ बोला-'आप क्यों आए थे? और क्यों जा रहे हैं? आने का कोई प्रयोजन आपने नहीं बताया?' मालवीयजी ने कहा-'आया था प्रयोजन से, पर अब मैं कहना नहीं चाहता। मन में सोचा था कि हिन्दू विश्वविद्यालय बन रहा है। तुम्हारे पास बड़ा चन्दा लेने की आशा से आया था, किंतु तुम तो इतने कृपण हो कि एक लकड़ी जला देने पर बच्चे को चांटा मार दिया। तुम मुझे क्या चंदा दोगे?' सेठ ने तत्काल पचास हजार का चैक दे दिया। मालवीयजी समझ नहीं पाये कि यह क्या? वे बोले-'सेठजी! तुम्हारे बारे में मेरे मन में एक भावना बन गई थी कि जो व्यक्ति एक लकड़ी जला देने के कारण बच्चे को चांटा जड़ देता है, वह क्या चंदा देगा?' सेठ बोला-'आप इस बात को नहीं जानते, मैं जानता हूं। व्यर्थ का नुकसान मैं एक पाई का भी सहन नहीं कर सकता
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