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________________ अपनी खोज १६३ तक समाधि उपलब्ध नहीं हो सकती। आवरण का हटना और जीवन में समाधि की घटना का घटित होना, एक ही बात है। समाधि के लिए आवरण को हटाना जरूरी है। अनावरण की साधना __ आवरण कैसे हटे? यह एक प्रश्न है। ज्ञान के द्वारा आवरण हट सकता है। आवरण इसलिए आता है कि हम केवल-ज्ञान के अधिकारी नहीं हैं, केवल-ज्ञानी नहीं हैं। जब तक केवल-ज्ञान की साधना नहीं करते, तब तक आवरण नहीं हटता। आवरण को हटाने के लिए, ज्ञान और दर्शन पर आये हुए पर्दे को दूर करने के लिए, केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन की साधना करनी जरूरी है। यहां शिविर में लोग सीखने को आते हैं। उन्हें एक ही बात सीखने को मिलती है। केवल-ज्ञान सीखें और केवल-दर्शन सीखें। लोग आश्चर्य करेंगे कि आज तक तो हमने सुना, यह पांचवां आरा कलिकाल है। आज केवल-ज्ञान नहीं हो सकता और केवल-दर्शन नहीं हो सकता। मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि यदि आपको केवल-ज्ञान नहीं होगा, केवल-दर्शन नहीं होगा, तो फिर ध्यान-शिविर में आना व्यर्थ होगा। यहां आने की सार्थकता है, आप केवल-ज्ञान सीखें, केवल-दर्शन सीखें। केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन-कोरा जानना, कोरा देखना । हम केवल-ज्ञान नहीं जानते, केवल-दर्शन नहीं जानते। कोरा नहीं जानते, कोरा नहीं देखते। हर ज्ञान के साथ, हर दर्शन के साथ संवेदन को जोड़ देते हैं। इसलिए आदमी को देखते हैं, पर आदमी को आदमी की दृष्टि से नहीं देखते। आदमी को आदमी की दृष्टि से नहीं जानते। या तो इस दृष्टि से देखते हैं कि यह हमारा प्रिय व्यक्ति है या इस दृष्टि से देखतें हैं कि यह हमारा अप्रिय व्यक्ति है। या तो इस दृष्टि से देखते हैं कि यह अच्छा है या इस दृष्टि से देखते हैं कि यह बुरा है। या तो इस दृष्टि से देखते हैं कि बड़ा सुन्दर है या इस दृष्टि से देखते हैं कि बड़ा कुरूप है। हम आदमी को केवल आदमी की दृष्टि से देखना नहीं जानते। हम किसी भी वस्तु को वस्तु की दृष्टि से देखना नहीं जानते, किन्तु उसके साथ कोई विशेषण जोड़कर देखना जानते हैं। अच्छी बातें, बुरी बातें, मनोज्ञ वस्तु, अमनोज्ञ वस्तु; प्रिय वस्तु, अप्रिय वस्तु; काम की वस्तु, निकम्मी वस्तु। एक विशेषण के साथ वस्तु को देखते हैं, केवल वस्तु को नहीं देखते। हम किसी भी घटना को घटना की दृष्टि से नहीं देखते, यथार्थ की दृष्टि से नहीं देखते। केवल-ज्ञान का अर्थ है-यथार्थ को जानना, केवल सचाई को जानना, जो जैसा है उसको वैसा जानना, उसके साथ और कोई बात नहीं जोड़ना। साधना का, समाधि का, ध्यान का पहला बिन्दु है केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन। जो व्यक्ति यथार्थ को यथार्थ की दृष्टि से देखना नहीं जानता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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