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१६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
सत्य को केवल सत्य की दृष्टि से देखना नहीं जानता, घटना का केवल घटना की दृष्टि से देखना नहीं जानता, उसका आवरण दूर नहीं हो सकता। आवरण का मूल हेतु है-केवल-ज्ञान न होना, केवल-दर्शन न होना, ज्ञान और दर्शन के साथ, जानने और देखने के साथ संवेदन का जुड़ा रहना । पानी की प्रणालिका में पानी की धारा, कोरी पानी की धारा नहीं, साथ में कीचड़ आ रहा है, साथ में गंदगी भी आ रही है, साथ में मलिनता आ रही है। यह कोरा पानी नहीं है। आदमी इस पानी को पीना नहीं चाहता। आदमी विवेक करता है। यह पीने लायक है या स्नान करने लायक है, या काम में नहीं लेने लायक है। पूरा विवेक करता है। आदमी पानी को साफ कर पीता है। केवल पानी पीना चाहता है, पानी के साथ कूड़े-कर्कट को, गंदगी को पीना नहीं चाहता। संवेदन हमारे जीवन का कूड़ा-कर्कट है। प्रियता और अप्रियता का संवेदन कूड़ा-कर्कट है। जब तक यह ज्ञान की धारा के साथ-साथ चलता है, तब तक हम समाधि को उपलब्ध नहीं हो सकते और इन बीमारियों से मुक्त नहीं हो सकते। आवरण को क्षीण करने के लिए बहुत जरूरी है, हम केवल-ज्ञान की साधना करें। केवल-दर्शन की साधना करें। समाधि की साधना केवल-ज्ञान की साधना है। समाधि की साधना केवल-दर्शन की साधना है। निर्बाध आनन्द की साधना
हम आनन्द को निर्बाध कैसे करें? ऐसे आनन्द को कैसे उपलब्ध हों जिसमें कोई बाधा न आए, रुकावट न आए, कुछ सुख और कुछ दुःख, यह न रहे? निरन्तर सुख, आत्यन्तिक सुख, केवल सुख और सुख, कभी दुःख न आए, हम निर्बाध आनन्द को कैसे उपलब्ध हो सकते हैं? सहज ही प्रश्न होगा। यह आपको जानना होगा, आनन्द में बाधा क्यों आती है। बाधा इसलिए आती है कि हमारी दृष्टि सम्यक् नहीं है। दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है। दृष्टि में सत्य की झलक नहीं है। इसमें मिथ्यात्व है, विपर्यय है, विपरीतता है। इस विपर्यय के कारण यह बाधा आती है। होता है सुख देने वाला, मान लेते हैं दुःख देने वाला। होता है दुःख देने वाला, मान लेते हैं सुख देने वाला। होता कुछ है और मान कुछ लेते हैं। यह दृष्टि का विपर्यय हमारे सुख को निर्बाध नहीं होने देता। यह प्रियता और अप्रियता का संवेदन क्यों होता है? एक वस्तु को प्रिय या अप्रिय मानना क्यों होता है? वास्तव में कोई वस्तु प्रिय नहीं होती, किन्तु एक मिथ्यादृष्टि के कारण एक को प्रिय मान लेता है और दूसरी को अप्रिय मान लेता है। एक बच्चा मिट्टी को कितना प्रिय मानता है। जिस बच्चे में मिट्टी खाने की आदत होती है उसे लगता है कि दुनिया में सबसे अच्छी वस्तु कोई है तो मिट्टी है। आप उसे चीनी दें। चीनी छोड़गा, गली में जाकर मिट्टी चाटने लग जाएगा। बड़ी प्रिय लगती है। क्यों होता है? अपने ही दृष्टि-विपर्यय के कारण हम यह
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