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________________ १६० अप्पाणं सरणं गच्छामि नहीं खींच सकता कि हाथ को जलाने की चाह तो नहीं है पर मैं आग में हाथ डाल रहा हूं। जिसके मन में बीमार होने की चाह नहीं होती वह बीमार नहीं होता। यह चाह जाने-अनजाने हर आदमी के मन में होती है। कोई आदमी देखना जानता है, वह इस चाह को देख लेता है और जो देखना नहीं जानता वह इस चाह को देख नहीं पाता, अनजान में चाह को पालता जाता है। चाह पलती जाती है। आदमी बीमार होता जाता है और उसको देख नहीं पाता, समझ नहीं पाता । अन्तर है केवल देखने का । जिस व्यक्ति में मानसिक उलझनों में जाने की चाह नहीं होती, वह मानसिक उलझन में नहीं जाता। मानसिक उलझन इसीलिए होती है कि हमारे मन में मानसिक उलझनों में, मानसिक तनाव में जाने की चाह मौजूद है। अविरति मौजूद है, अतृप्ति मौजूद है। प्रियता और अप्रियता का संवेदन है। जब हमारे भीतर किसी को प्रिय मानने की चाह है और किसी को अप्रिय मानने की चाह भी हमारे भीतर है, तब प्रियता का संवेदन, अप्रियता का संवेदन रहे और मानसिक उलझन न रहे, यह कभी नहीं हो सकता। हम मानसिक तनाव में, मानसिक उलझन में, प्रियता और अप्रियता के संवेदन में भी कोई अन्तर नहीं कर सकते। उनके बीच में कोई भेद-रेखा नहीं खींच सकते। प्रियता और अप्रियता का संवेदन तथा मानसिक बीमारियां, मानसिक उलझनें, शब्द दो हैं, तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है। जो क्रोधी होना नहीं चाहता, क्या वह कभी क्रोधी हो सकता है? क्रोध उसी व्यक्ति को आएगा जो क्रोधी होना चाहता है। अभिमानी वही बनेगा, जो अभिमानी होना चाहता है। कपटी वही बनेगा, जिसके मन में कपट करने की चाह है। लोभी वही बनेगा, जिसके मन में लोभी होने की चाह है। यदि चाह मिट जाए, फिर कोई क्रोधी नहीं बन सकता। सबसे बड़ी बीमारी है यह चाह, अतृप्ति, आकांक्षा। आकांक्षा हमारी सबसे बड़ी बीमारी है। सारी बीमारियों की जड़ में है आकांक्षा, अविरति । यदि आकांक्षा मिट जाए, अविरति समाप्त हो जाए, तो फिर न प्रमाद होगा, न कषाय होगा और न कोई बीमारी होगी। हम इस सचाई को देखें, इस सचाई को जानें और जो इस सचाई को जानते हैं उनके सामने यह प्रश्न जटिल नहीं बनता कि चुनाव कैसा? चाह से प्रेरित है चुनाव व्याधि, आधि और उपाधि से पीड़ित होने का चुनाव कौन करेगा? किन्तु आदमी यह चुनाव करता है। वह इसलिए करता है कि उसके भीतर चाह मौजूद है। परन्तु जब मनुष्य को स्वतन्त्रता है और वह चुनाव करने में सक्षम है, तो वह व्याधि, आधि और उपाधि से दूर जाने का चुनाव भी कर सकता है। जब वह व्याधि, आधि और उपाधि से दूर हटकर समाधि का चुनाव करता है तब उसकी सारी जीवन की दिशा बदल जाती है। समाधि कोई अद्भुत वस्तु नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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