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________________ १८८ अप्पाणं सरणं गच्छामि आधि नहीं सताती। ये तीनों-व्याधि, उपाधि और आधि जब निःशेष हो जाती हैं तब समाधि घटित होती है। व्याधि आती है, रोग होता है, समाधि टूट जाती है। सुख और संतोष समाप्त हो जाते हैं। आदमी दुःखी बन जाता है। आधि आती है तब आदमी की स्थिति और ज्यादा भयंकर हो जाती है। शरीर में कोई रोग नहीं, किन्तु मानसिक उलझन आदमी को इतना बेचैन बना देती है कि आदमी एक क्षण के लिए भी सुख की सांस नहीं ले सकता। आधि की कठिनाई व्याधि से अधिक है। आधि की स्थिति में आदमी पागल बन जाता है। सब कुछ साधन होने पर भी वह बहुत दुःखी बन जाता है। उपाधि की स्थिति आधि से भी ज्यादा भयंकर होती है। उपाधि का अर्थ है-कषाय। उस स्थिति में आदमी आदमी नहीं रहता। वह और कुछ बन जाता है-पिशाच, भूत या राक्षस बन जाता है। उसमें क्रोध, अभिमान और माया का भूत जागता है, कपट उभरता है, लालच जागता है। इन सबके अस्तित्व में आदमी सब कुछ करता है जो उसे कभी नहीं करना चाहिए। व्याधि, आधि और उपाधि-तीनों खतरे हैं। इनकी अवस्थिति में समाधि नहीं आ सकती। एक रोगी आदमी बहुत बड़ा धनी हो सकता है, बहुत बड़ा कलाकार हो सकता है, बहुत बड़ा वैज्ञानिक हो सकता है। मानसिक व्यथा से पीड़ित आदमी बहुत बड़ा धनी, वैज्ञानिक और कलाकार हो सकता है। क्रोध से भरा हुआ आदमी धनी हो सकता है, बड़ा शिल्पी भी हो सकता है, कलाकार भी हो सकता है, बड़ा वैज्ञानिक भी हो सकता है, किन्तु व्याधि, आधि और उपाधि से भरा हुआ आदमी समाधिस्थ नहीं हो सकता। समाधिस्थ होने के लिए तीनों के पार जाना जरूरी होता है। शरीर निरन्तर बीमार रहता है, समाधि कैसे होगी? मन उलझनों से भरा रहता है, समाधि कैसे होगी? आदमी उपाधि से भरा रहता है, कषाय से भरा रहता है, समाधि कैसे उपलब्ध होगी? इन सबसे पार जाने पर ही समाधि का बिन्दु उपलब्ध होता है। स्वतंत्रता मनुष्य की दूसरी विशेषता यह है कि वह स्वतंत्र है। स्वतंत्रता प्राणी की विशेषता है। अचेतन स्वतंत्र नहीं होता। चेतन स्वतंत्र होता है। हमारी दुनिया में दो मूल तत्त्व हैं-एक चेतन और एक अचेतन। चेतन और अचेतन में अन्तर यह है कि चेतन स्वतंत्र होता है, नियति से पूरा बंधा हुआ नहीं होता और अचेतन केवल नियति से बंधा हुआ होता है। उसकी अपनी कोई स्वतंत्रता नहीं होती। जितने सार्वभौम नियम हैं, जितने युनिवर्सल लॉ हैं-ये सब अचेतन के लिए हैं। चेतन के लिए ये लागू नहीं होते। बहुत बड़ी भेद-रेखा है चेतन और अचेतन में। चेतन स्वतंत्र होता है। अचेतन स्वतंत्र नहीं होता, पूरा परतंत्र होता है। प्राणी में स्वतंत्रता होती है इसलिए वह बदल सकता है। उसमें बदलने की क्षमता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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