SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ अप्पाणं सरणं गच्छामि बेटे ने पूछा-'मां, तुम इतनी दुःखी क्यों रहती हो? इतना शोक क्यों करती हो?' मां ने कहा-'बेटा! क्या करूं, जब पड़ोसी के घर में बिलौना होता है, मथनी चलती है तो मुझे ऐसा अनुभव होता है कि वह मथनी दही में नहीं चल रही है, मेरी छाती में चल रही है। यही मेरे दुःख का मूल कारण है।' दुःख कौन देता है-बिलौना, मथनी या पड़ोसी? कोई दुःख नहीं देता। मन की भ्रांति ही दुःख देती है। एक गांव में एक व्यक्ति का मकान सबसे ऊंचा था। वह तिमंजिला मकान उसके अहंकार को पुष्ट किए था। कुछ वर्षों के बाद बाहर से एक व्यक्ति आकर उस गांव में बस गया। उसने पांच मंजिला मकान खड़ा कर दिया। अब उस गांव में उसी का मकान बड़ा था। तिमंजिला मकान वाला व्यक्ति दुःखी हो गया। शरीर सूख गया। मित्रों ने दुःख का कारण पूछा। उसने कहा-'आज तक सुखी था। मकान का अहं मुझे तृप्ति दे रहा था। अब दूसरे का ऊंचा मकान मेरे अहंकार पर चोट करता है। उसे देखते ही उदासी छा जाती है।' दुःखी कौन करता है? क्या बड़ा मकान उसे दुःखी बना रहा है? नहीं। हमारे ही मन के अहंकार और ममकार परिस्थिति का निमित्त पाकर जागृत होते हैं और दुःखी बना देते हैं। प्रियता और अप्रियता का संवेदन सुख दुःख का निमित्त बनता है। आधि की जटिलता कठिन प्रश्न है। उसकी चिकित्सा एक दुरूह विधि है। व्याधि से जितने व्यक्ति दुःखी नहीं है, उतने व्यक्ति आधि से पीड़ित हैं। आज का आदमी शरीर से जितना अस्वस्थ नहीं है, उतना मन से अस्वस्थ है। सचाई यह है कि आदमी जितना अधिक मन से अस्वस्थ होता है उतनी ही व्याधियां भोगता है। एक दृष्टि से आधि व्याधि की जननी है। जो आदमी मन से स्वस्थ नहीं है, वह शरीर से स्वस्थ नहीं हो सकता। विचार आदमी को अस्वस्थ करते हैं और विचार ही आदमी को स्वस्थ करते हैं। बायोफीडबेक पद्धति ___ व्याधि और आधि से निबटने के लिए हम नियंत्रण-शक्ति का विकास करें। उन शक्तियों को जागृत करें। प्रेक्षा इसका माध्यम है। विज्ञान के क्षेत्र में कुछ ऐसी खोजें हुई हैं जिनके आलोक में प्रेक्षा-ध्यान को सहज रूप में समझा जा सकता है। आज वैज्ञानिक जगत् में 'बायोफीडबेक पद्धति' चलती है। इसका सहज सरल अनुवाद किया जा सकता है-प्रेक्षा-पद्धति । अन्तर इतना ही है कि हम प्रेक्षा का अभ्यास अपनी चेतना के द्वारा करते हैं, और 'बायोफीडबेक पद्धति में अभ्यास होता है उपकरणो के द्वारा, यंत्रों के द्वारा। किन्तु वास्तव में यह भी एक प्रेक्षा की ही पद्धति है। हम प्रेक्षा के समय देखते हैं कि हमारे शरीर में क्या परिवर्तन हो रहे हैं? क्या क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं हो रही हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy