SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभव जागे ७ रक्तचाप एक व्याधि है । घ्यान के द्वारा उस पर नियंत्रण हो सकता है। तापमान कम होता है, तापमान बढ़ता है। रक्ताणुओं की प्रक्रिया वृद्धिंगत होती है । इन सब पर नियंत्रण हो सकता है। जितनी भी शारीरिक व्याधियां हैं उन पर नियंत्रण हो सकता है। पहले हम प्रेक्षा करें, देखें, फिर नियंत्रण करें। हमारे शरीर में अनेक नियंत्रण कक्ष हैं, नियंत्रण की अनेक शक्तियां हैं। हम उन्हें जान लेते हैं तो नियंत्रण करना सहज और सरल हो जाता है। दवाइयों से पिण्ड छूट जाता है । आदमी यही मानता है कि व्याधि मिटाने का एक परमात्मा है डॉक्टर, और एक परम उपाय है दवाई | दवाइयां खाते जाओ और व्याधियां भुगतते जाओ । दवाई से एक व्याधि शांत होती है तो दूसरी उभर आती है। इसका कहीं अन्त नहीं आता । यदि व्याधि को मिटाना है तो हम नियंत्रण करना सीखें । आधि / I समाधि का दूसरा अवरोधक तत्त्व है - आधि । यह मानसिक अस्वास्थ्य है । - हम मन की उपेक्षा करते हैं। उस पर ध्यान ही नहीं देते। जबकि सबसे अधिक ध्यान देने योग्य वस्तु है मन । सभी व्यक्ति मन की भयंकर बीमारी को भोगते हैं । व्यक्ति कभी प्रिय संवेदनों का शिकार होता है और कभी अप्रिय संवेदनों का । पदार्थों की प्रचुरता में भी वह दुःखी बना रहता है। जिन पदार्थों पर व्यक्ति को सबसे ज्यादा भरोसा होता है, उनसे भी वह दुःखी बन जाता है। संयोग दुःख बढ़ाता है । वियोग दुःख बढ़ाता है। आदमी जानता है कि संयोग भी निश्चित घटना है और वियोग भी निश्चित घटना है । कोई इन्हें टाल नहीं सकता । संयोग होगा तो वियोग निश्चित होगा । वियोग होगा तो संयोग निश्चित ही होगा। संयोग होना दुःख नहीं है । वियोग होना भी दुःख नहीं है। संयोग होना सुख नहीं है । वियोग होना भी सुख नहीं है । पर मनुष्य में भ्रांति है । अप्रिय का संयोग होता है, आदमी दुःखी बन जाता है। प्रिय का वियोग होता है, आदमी दुःखी बन जाता है । प्रिय का संयोग होता है, आदमी सुखी बन जाता है । अप्रिय का वियोग होता है आदमी सुखी बन जाता है। आदमी संयोग से सुखी भी बनता है और दुःखी भी बनता है । आदमी वियोग से सुखी भी बनता है और दुःखी भी बनता है । मृत्यु एक अनिवार्य घटना है । जो जन्मता है वह निश्चित ही मरता है । पर इस नियति की घटना पर भी हम सुखी होते हैं, दुःखी होते हैं। यह भ्रांति है। अन्यथा जन्म खुशी का कारण नहीं बनना चाहिए और मरण खिन्नता का कारण नहीं बनना चाहिए । मित्र की मृत्यु दुःख का संवेदन पैदा करती है और शत्रु की मृत्यु सुख का संवेदन पैदा करती है । यह सब भ्रान्ति है । हमने इतने मानसिक चित्र बना रखे हैं कि उन्हें देखकर कभी सुखी हो जाते हैं और कभी दुःखी । 1 पड़ोसी के घर में बिलौना होता था । यह देखकर एक स्त्री दुःखी रहने लगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy