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________________ समाधि और प्रज्ञा १७५ दही का मन्थन करता चला जाए और नवनीत न निकले, श्रम व्यर्थ गया। किसलिए मन्थन? नवनीत के लिए। और यदि नवनीत मिलता ही नहीं, कोरा हाथ चलता चले, रस्सी चलती जाए, कोरा श्रम चलता जाए और पसीने की बूंदें टपकती चली जाएं, नवनीत न मिले तो प्रयत्न सार्थक नहीं हुआ। हम व्यर्थ प्रयत्न करना नहीं चाहते। प्रयत्न की सार्थकता होनी चाहिए। समाधि की सार्थकता है जीवन का परिवर्तन। समाधि : रूपान्तरण की प्रक्रिया परिवर्तन के तीन पहलू हैं-शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक । समाधि के द्वारा घटित होने वाले परिवर्तन का पहला पहलू है-शारीरिक परिवर्तन। शरीर में भी परिवर्तन आना चाहिए। शरीर के रसायन बदलने चाहिए। समाधि की साधना के द्वारा शरीर के रसायनों में परिवर्तन होना जरूरी है। हमारे रासायनिक संतुलन के दो मुख्य स्रोत हैं-एक पिच्यूटरी और दूसरा एड्रीनल। एड्रीनल की दो ग्रन्थियां और पिच्यूटरी-ये तीन ग्रंथियां शारीरिक रसायन का संतुलन करती हैं। यानी शरीर में जो रसायन हैं उनमें संतुलन बनाए रखती हैं। यदि समाधि की साधना के द्वारा इन तीनों ग्रन्थियों के स्रावों में परिवर्तन नहीं हुआ, इनके हारमोन्स में परिवर्तन नहीं हुआ तो फिर मानना चाहिए कि समाधि ठीक सध नहीं रही है, समाधि का अभ्यास ठीक नहीं हो रहता है। ये बदलने चाहिए। चैतन्य-केन्द्रों का निर्मलीकरण दूसरी बात है कि हमारे शरीर में सैकड़ों-सैकड़ों चैतन्य केन्द्र हैं, चेतना को जगाने वाले चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) या विद्युत् क्षेत्र (Electric Field) सैकड़ों-सैकड़ों हैं। वे सब निर्मल बनने चाहिए। वे निर्मल बनते हैं तो उनमें से अतीन्द्रिय चेतना की रश्मियां बाहर निकलती हैं, अतीन्द्रिय चेतना जागती है। ये निर्मल नहीं बनते हैं, मैले रह जाते हैं, तो फिर उनमें से ज्ञान की रश्मियां बाहर नहीं आ सकतीं और व्यक्ति का ज्ञान प्रज्ञा की कोटि में नहीं आ सकता। प्रज्ञा तब जागती है जब शरीर के चैतन्य केन्द्र निर्मल बन जाते राजा ने चित्रकारों को बुलाया। बुलाकर कहा-चित्रशाला बनानी है। जो सबसे सुन्दर बनाएगा उसे पुरस्कृत किया जायेगा। चित्रशाला यदि ठीक नहीं बनी, उसे दण्ड दिया जाएगा। बड़ा मोहक आकर्षण भी था पुरस्कार का और बड़ा भय भी था निर्वासित होने का। दोनों बातें होती हैं तो आदमी को बहुत सोचना पड़ता है। सभी चित्रकार पलायन कर गए। केवल दो चित्रकार सामने आए और दोनों ने कहा-"हम आपकी शर्त को स्वीकार करते हैं।" चित्रशाला का निर्माण शुरू हुआ। आधा खण्ड एक को और आधा एक को दे दिया और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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