SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ अप्पाणं सरणं गच्छामि बोले-“गुरुदेव! गलती हो गई और तेला प्रायश्चित्त है यह तो ठीक बात है, पर लोगों को पता चले कि ऐसा होता है, इनको तीन उपवास करने पड़ते हैं तो आनन्द लेने वाले लोग भी बहुत होते हैं, कोई ऐसे ही झूठी शिकायत कर दे तो?" आचार्य भिक्षु ने कहा-“झूठी शिकायत होगी तो भी तेला तो करना ही पड़ेगा।" यह कैसे गुरुदेव! गलती करने पर प्रायश्चित्त हो ठीक बात है, पर बिना गलती के दंड कैसे? आचार्य भिक्षु ने कहा-“गलती करने पर प्रायश्चित्त हो तो समझ लेना मैंने गलती का प्रायश्चित्त किया और बिना गलती हो तो समझ लेना पुराने संस्कारों का मैंने ऋण चुकाया। तेला करना होगा। उन्होंने स्वीकार कर लिया, कोई कठिनाई नहीं। यह घटना तब घट सकती है जब अलौकिक चेतना जाग जाए। लौकिक चेतना में ऐसा कभी नहीं होता। अलौकिक चेतना जागती है अहंकार छोड़ने से। अहंकार छोड़े बिना समाधि का प्रश्न ही नहीं उठता। अहंकार मनुष्य को ज्यादा-से-ज्यादा सताता है और आदमी यही समझता है कि ज्यादा-से-ज्यादा मुझे बड़ा बनाने वाला यही है। हमारी कितनी भ्रांतियां होती हैं। न जाने हम अपने अज्ञान के कारण, मूर्छा के कारण, मोह के कारण कितनी भ्रान्तियों को पालते हैं, भ्रान्तियों का जीवन जीते हैं। जो सबसे ज्यादा सताते हैं उनको तो सबसे निकट मानते हैं और जो सताने वाले नहीं हैं, उनको दुश्मन मान लेते हैं। आदमी आदमी को कभी नहीं सताता। आदमी आदमी का कभी दुश्मन नहीं बनता। दुश्मन बनता है इसलिए कि अहंकार एक दुश्मन भीतर बैठा है। इसलिए हम आदमी को दुश्मन मान लेते हैं। ___ अलौकिक चेतना जब जागती है तब ज्ञान की दिशा भी बदल जाती है। विद्या का मुख्य उद्देश्य बन जाता है- “एगग्गचित्तो भविस्सामि"-चित्त को निर्मल बनाऊंगा, एकाग्र बनाऊंगा। चित्त की एकाग्रता मुख्य उद्देश्य बन जाता है। सारी जीवन की दिशा बदल जाती है। हमारी कठिनाइयां और उलझनें चित्त की चंचलता के कारण बढ़ती हैं। जब चित्त को एकाग्र करने की बात मुख्य बन जाती है तब समस्याएं अपने आप सुलझती चली जाती हैं। अलौकिक चेतना जागती है तब तपस्या का और आचार का उद्देश्य बदल जाता है। वह व्यक्ति ऐहिक सुखों के लिए तप और आचार का पालन नहीं करता; ऐहिक पूजा-प्रतिष्ठा के लिए तप और आचार का अनुशीलन नहीं करता। वह केवल आत्म-शुद्धि के लिए, केवल पूर्वकृत दुःखों को समाप्त करने के लिए, अर्जित संस्कारों और कर्मों को समाप्त करने के लिए तप का अनुशीलन करता है, आचार का अनुशीलन करता है। समाधि की साधना का परिणाम है जीवन की दिशा में परिवर्तन। कोई ध्यान करता चला जाए, समाधि की साधना करता चला जाए और जीवन में कोई परिवर्तन न आए, मानता हूं, सारा प्रयत्न व्यर्थ चला गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy