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________________ १७२ अप्पाणं सरणं गच्छामि है। मन से परे और बुद्धि से परे जो चेतना जागती है उसका नाम है-प्रज्ञा। प्रज्ञा, अनुभव, साक्षात्कार । जिस चेतना में शक्ति के साक्षात्कार की क्षमता आती है उस चेतना का नाम है-प्रज्ञा। साक्षात्कार होता है, सत्य को साक्षात् देखा जाता है, साक्षात् अनुभव किया जाता है। किसी माध्यम से नहीं देखा जाता, किसी दूसरे के सहारे से नहीं देखा जाता। न आंखों के सहारे की जरूरत है, न कान के सहारे की जरूरत है। उसमें इन्द्रिय के सहारे की जरूरत नहीं है। मस्तिष्क के सहारे की जरूरत नहीं है। बुद्धि के सहारे की जरूरत नहीं है। सब सहारे समाप्त हो जाते हैं। अवलम्बन सारे छूट जाते हैं। निरालम्ब चेतना जागती है। जिस चेतना को किसी आलम्बन की जरूरत नहीं रहती, अपेक्षा नहीं रहती, वह चेतना है प्रज्ञा। प्रज्ञा जब जागती है तब कुछ अलौकिक बातें जीवन में आनी शुरू हो जाती हैं। लौकिक-अलौकिक चेतना की फलश्रुति प्रज्ञा की चेतना का पहला स्फुलिंग है अलौकिक चेतना । जैसे-जैसे जीवन में समाधि का प्रवेश होता है, वैसे-वैसे प्रज्ञा जागती है और प्रज्ञा का पहला स्फुलिंग होता है अलौकिक चेतना। उससे अनुशासन, ज्ञान, तपस्या, चरित्र-सबको प्रतिष्ठा दी जाती है। हम देखते हैं, अनुशासन लाने के कितने प्रयत्न होते हैं? विनम्रता के लिए कितना प्रयत्न होता है। न अनुशासन आता है जीवन में और न विनम्रता आती है। हर माता-पिता चाहते हैं कि सन्तान विनय करे, अनुशासन में रहे। हर अध्यापक चाहता है, छात्र अनुशासन में रहे। हर राजनेता चाहता है कि सारी जनता अनुशासन में रहे। चाहते हैं, न सन्तान अनुशासन में रहती है, न छात्र अनुशासन में रहते हैं और न जनता अनुशासन में रहती है। इसलिए नहीं रहती कि लौकिक चेतना में अनुशासन चल नहीं सकता, निभ नहीं सकता। लौकिक चेतना का मुख्य सूत्र है-अहंकार । अहंकार सुरक्षित रहे, अहंकार को चोट न लगे। हर आदमी सोचता है कि मेरे अहंकार को कोई चोट नहीं लगनी चाहिए। माता-पिता छोटे बच्चे को भी कुछ बात कहते हैं, तब उसे अनुभव होता है कि उसके अहं पर चोट लगा दी। बस, जैसे ही चोट लगती है, वह फुफकार उठता है सांप की तरह,और फन उठ जाता है। एक कर्मचारी, नौकर, छोटे-से-छोटा कहलाने वाला आदमी भी अहं पर चोट को सहन नहीं करता। कहता है, बाबूजी! चाहे आप और कुछ कहिये पर मेरे अहं पर चोट न करें। मैं इसे सहन नहीं कर सकता। जहां अहंकार ही जीवन का तत्त्व होता है वहां अनुशासन की बात नहीं हो सकती। जैसे ही अनुशासन आया, अहं पर चोट लगी और झगड़ा शुरू हो जाता है। आज के सारे पारिवारिक झगड़े, संस्थाओं के झगड़े और राज्यों के झगड़े अहं की चोट के झगड़े हैं। एक आदमी दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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