________________
समाधि और प्रज्ञा १७१
एक लड़की से पूछा गया, “तुम किस कुल की पुत्री हो?" लड़की ने उत्तर दिया
"विहिता निर्विषा नागाः, गजाः शक्तिविवर्जिता।
बलमुक्ताः भटा येन, तस्याऽहं कुलबालिकाः।। जिसने सांपों को निर्विष, हाथियों को शक्तिहीन और योद्धाओं को बलहीन बना डाला है, उस कुल की मैं लड़की हूं।' कौन हो सकता है ऐसा व्यक्ति जो सांपों को विषशून्य बन दे, हाथियों को शक्तिशून्य बना दे और योद्धाओं को आक्रामक वृत्ति से शून्य बना दे। वह चित्रकार हो सकता है। लड़की ने कहा-मैं चित्रकार की पुत्री हूं। चित्रकार में यह क्षमता है कि वह सांपों को विषशून्य बना देता है। सांप, भयंकर सांप जो ऐसा लगता है कि मानो काटने आयेगा, किन्तु कोरा चित्र का है, उसमें जहर नहीं होता। भयंकर हाथी, किन्तु शक्ति नहीं है। सामने चले जाओ, छू लो, कुछ भी नहीं। भयंकर योद्धा चित्रित है, पर आक्रमण की कोई ताकत नहीं।
समाधि की अवस्था ठीक चित्रकार की अवस्था है। समाधि का जीवन जीने वाला व्यक्ति उस कुशल चित्रकार की तरह अपने जीवन को बना देता है जिसमें संवेदन के केन्द्र तो रहते हैं पर उनकी क्षमताएं चली जाती हैं। समाधि की साधना करने वाले व्यक्ति में भी क्रोध के संवेदन का केन्द्र तो रहेगा पर सांप का जहर नहीं रहेगा, काटेगा नहीं, फुफकारा भी नहीं करेगा। क्रोध का संवेदन-केन्द्र विष-शून्य बन जायेगा। समाधि की साधना करने वाले व्यक्ति में अहंकार का केन्द्र निष्क्रिय बन जायेगा। अहंकार की हाथी से तुलना की जाती है। उसका अहंकार का केन्द्र शक्तिशून्य बन जायेगा। योद्धा भी निष्प्राण बन जायेगा, आक्रामक वृत्ति उसकी समाप्त हो जायेगी। समाधि में न क्रोध होगा, न अहंकार होगा और न आक्रामक वृत्तियां होंगी, न लड़ने की वृत्तियां होंगी। सारी समाप्त हो जायेंगी। केन्द्र बने रहेंगे वैसे ही, जैसे चित्र में बने हैं। सक्रिय नहीं होंगे। समाधि का अर्थ कर्म छोड़ना नहीं है, सक्रियता को छोड़ना नहीं है किन्तु सक्रियता को बदल देना है। असमाधि की अवस्था में हमारा चेतन मन अधिक सक्रिय होता है। हमारे ये संवेदन-केन्द्र अधिक सक्रिय होते हैं। समाधि की अवस्था में चेतन मन निष्क्रिय हो जाता है, अन्तर्मन, अन्तर की चेतना अधिक सक्रिय बन जाती है। हमारे मस्तिष्क के संवेदन-केन्द्र निष्क्रिय हो जाते हैं। सूक्ष्म-चेतना के स्तर पर कार्य करने वाले चैतन्य केन्द्र अधिक जागरूक बन जाते हैं। बाहर को निष्क्रिय बनाना और भीतरी चेतना को सक्रिय बनाना, इतना अन्तर होता है। जीवन की दिशा बिलकुल बदल जाती है। प्रज्ञा का अवतरण
समाधि की सबसे बड़ी उपलब्धि है-प्रज्ञा। समाधि की अवधि जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाती है, प्रज्ञा जागती रहती है। प्रज्ञा बुद्धि नहीं है, प्रज्ञा मन नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org