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चित्त-समाधि के सूत्र ( २ ) १६३
रखा है। किन्तु जब सूक्ष्म जगत् के आवरण हटते हैं, हमारी चेतना सूक्ष्म होती है और जब सूक्ष्म सत्यों को पकड़ने की हमारी क्षमता जागती है तब हमें लगता है कि हमारा सूक्ष्म जगत् कितना बड़ा है, कितना विशाल और कितना विराट् है । आदमी पहले समझ भी नहीं पाता, उलझ जाता है। पता ही नहीं होता क्या हो रहा है? कुछ भी पता नहीं चलता ।
भोला नौकर था, देहाती । सेठ ने कहा- “ अरे भई जाओ, देखो, सूरज दिखाई दे रहा है कि नहीं ।" बाहर गया। फिर आया भीतर। बोला- “ सेठ साहब ! सूरज दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि अभी अंधेरा है।” सेठ ने कहा- “ दीया जलाकर देखो कि आकाश में सूरज है या नहीं ।" क्या सूरज को देखने के लिए भी दीये की जरूरत होती है। सूरज नहीं होता तो सारे दीये टिमटिमाते हैं, जलते हैं और एक सूरज आता है तो सब दीये बुझ जाते हैं । फिर दीये की कोई जरूरत नहीं होती। सूरज को देखने के लिए कभी दीये की जरूरत नहीं, किन्तु जब आदमी नहीं जानता, वह समझता है कि सूरज आकाश में तो है पर अंधेरा है इसलिए दिखाई नहीं देता ।
तृष्णा : एक अमिट प्यास
जब चेतना अपने आपमें प्रतिबिंबित हो जाती है तब उसके देखने के लिए किसी की जरूरत नहीं होती । जब मनुष्य अपनी स्थूल चेतना के द्वारा अपनी सूक्ष्म चेतना को देखना शुरू कर देता है, तब भीतर में जो है, वह उसे साफ दिखाई देने लगता है और भीतर में विचित्र घटनाएं घटित होने लगती हैं। फिर उसके लिए कोई दीया जलाने की जरूरत नहीं होती । समाधि हमारी चेतना की वह अवस्था है कि जहां बाहर के सारे आलम्बन छूट जाते हैं। कोई आलम्बन लेना नहीं होता ध्यान करने के लिए । समाधि का जब उपक्रम होता है वहां कोई आलम्बन जरूरी नहीं होता । न शब्द का, न रूप का, न चिन्तन का । किसी विषय पर मन को एकाग्र करने की जरूरत नहीं होती । एकाग्रता भी नीचे रह जाती है । समाधि की अवस्था में तन्मयता आती है। मनुष्य तन्मय बन जाता है। केवल चैतन्यमय बन जाता है। केवल चैतन्य का अनुभव शेष रह जाता है और सारे अनुभव समाप्त हो जाते हैं। बाहर आदमी सो जाता है और केवल आन्तरिक जागरूकता शेष रह जाती है । संकल्प का नाश, विकल्प का नाश । जब संकल्प और विकल्प का नाश होता है तब तृष्णा भी समाप्त हो जाती है। तृष्णा सबसे बड़ी बाधा है। मनुष्य में यदि तृष्णा नहीं होती तो प्रवृत्तियों के व्यूह में इतना नहीं उलझता । एक तृष्णा के कारण ही मनुष्य उलझा हुआ है। तृष्णा एक प्यास है और अमिट प्यास है, जो कभी नहीं बुझती । उसी प्यास को बुझाने के लिए आदमी सारा प्रयत्न कर रहा है। बड़प्पन की प्यास, राजनेता बनने की प्यास, बड़ा धनपति बनने की प्यास, बड़े पद पर, बड़ी सत्ता पर, बड़े
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