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१६२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
समाधि हमारी आन्तरिक जागरूकता है, आन्तरिक जागरण है। जब आदमी भीतर में जागने लगता है, तब इस प्रकार का अलौकिक जगत् उसके सामने आता है जिसकी उसने पहले कभी कल्पना ही नहीं की । जब नयी चीज सामने आती है तो उसे बड़ा विचित्र - सा लगता है ।
एक आदिवासी नगर में गया और एक आदमकद शीशा ले आया। घरवालों कभी नहीं देखा था कि शीशा क्या होता है? उसने घर पर शीशा रख दिया । पत्नी शीशे के सामने गई और चौंक पड़ी। वह सीधी पहुंची सास के पास । जाकर बोली- आज बड़ा अनर्थ हो गया । सास ने पूछा- क्या हो गया? उसने कहा- तुम्हारा बेटा दूसरी औरत ले आया । सास ने कहा- यह कैसे हो सकता है? अभी जाती हूं। वह शीशे के पास आयी, देखा, बोली- अरे, दूसरी औरत ले आया तो ठीक है पर आखिर बूढ़ी को ही क्यों लाया ।
दोनों को अपने प्रतिबिंब का पता ही नहीं चला। इसलिए पत्नी ने सोचा कि और कोई औरत ले आया और सास ने सोचा, बूढ़ी औरत को ले आया । सूक्ष्म जगत् : कितना विराट्
इस प्रकार हमें पता नहीं होता चैतन्य के अनुभव का, और जब आदमी को पता ही नहीं होता तो बड़ा अजीब-सा लगता है। ऐसा लगता है कि यह क्या है ? कहां से आ गया? यह घटना कहां से घटित हो गई? शिविर में प्रेक्षा-ध्यान की साधना करते-करते कुछ लोगों में अनुभव जागते हैं । वे मेरे पास आते हैं। अपने अनुभव सुनाते हैं। मैंने सब को कह रखा है कि कोई भी विशेष अनुभव हो तो बता दें, अगर बताना हो तो, अन्यथा अपने पास रखें, क्योंकि आन्तरिक अनुभव बताना अच्छा नहीं है । बाहर में क्या परिवर्तन हो रहा है। बताया जा सकता है किन्तु ध्यान-काल में कुछ इस प्रकार के अनुभव जागते हैं कि वे अनुभव सब के सामने प्रस्तुत नहीं करने चाहिए । ऐसे विचित्र अनुभव बताये। किसी ने कुछ देखा । उन्होंने कभी कल्पना ही नहीं की थी कि इस प्रकार के भी दृश्य देखे जा सकते हैं। इस प्रकार के सुन्दर रंग देखे जा सकते हैं जो रंग हमारी दुनिया में नहीं है। वैज्ञानिक दुनिया में जिन रंगों को कभी देखने का मौका नहीं मिलता, वह ध्यान - काल में देखने का मौका मिलता है । सारी दुनिया में जो सुन्दर रूप देखने का मौका नहीं मिलता वह ध्यान - काल में मिलता है । एक भाई ने आज कहा - "हम पहले ध्यान नहीं करते थे तो बाहर के रंग और रूप दिखाई देते थे। अब ध्यान करने लग गये तो भीतर के रंग-रूप दिखाई देने लग गये। बस, क्या इतना ही होगा या और कुछ होगा ?” मैंने कहा—यह तो पहला चरण है । जब भीतर की चेतना जागेगी तो इतना दिखाई देगा कि आज कोई संभावना ही नहीं की जा सकती। हमारे स्थूल जगत् में बहुत कम वस्तुएं हैं। हमारा स्थूल जगत् बहुत छोटा है। हमने बहुत बड़ा मान
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