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चित्त-समाधि के सूत्र (२) १६१
वह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने देखा कि ध्यान करने वाले व्यक्ति की, तीन मिनट में, ऑक्सीजन की खपत में सोलह प्रतिशत की कमी हो जाती है। केवल तीन मिनट में। जबकि पांच घंटा की गहरी नींद आदमी लेता है तो आठ प्रतिशत
ऑक्सीजन की खपत कम होती है। कितना बड़ा अन्तर है? तीन मिनट में सोलह प्रतिशत की कमी और पांच घंटे की नींद में आठ प्रतिशत की कमी। ध्यान में त्वचा की अवरोधक-शक्ति बढ़ जाती है। हमारी त्वचा में बहुत अवरोधक-शक्ति है। यदि त्वचा में अवरोधक-शक्ति न हो तो बाहर की विद्युत्-तरंगों को आदमी पकड़ लेता है और जब बाहर की विद्युत्-तरंगों को पकड़ लेता है तो न जाने कितनी बीमारियों को, कितने मानसिक विकारों को अनायास भीतर ले लेता है। किन्तु त्वचा में इतनी अवरोधक क्षमता है कि वह बाहर की विद्युत् तरंगों को नहीं पकड़ती। पास में आती है तो फेंक देती है इसलिए बाहर के प्रभावों को वह कम ग्रहण करती है। नींद की अवस्था में देखा गया कि त्वचा की अवरोधक-शक्ति तो बढ़ती है किन्तु बहुत कम मात्रा में बढ़ती है। ध्यान की तुलना में बहुत ही नगण्य बढ़ती है। ध्यान की स्थिति में मस्तिष्क में अल्फा तरंगे जाग जाती हैं। अल्फा तरंगों के जागने का मतलब है शांति का अनुभव, सुख का अनुभव । हमारी मन की शांति और मन का सुख, वह अल्फा तरंगों के कारण होता है। नींद में अल्फा तरंगें नहीं जागतीं। यदि नींद शुरू होती है तो अल्फा तरंगें जो होती हैं वे भी समाप्त हो जाती हैं। तब बीटा, थीटा आदि तरंगें जागनी शुरू हो जाती हैं। किन्तु जब गाढ़ नींद बनती है, उसमें अल्फा तरंगें भी कुछ जागती हैं। इसलिए नींद में भी आदमी को कुछ सुख का अनुभव होता है। किन्तु ध्यान की तुलना में बहुत कम जागती हैं। इसलिए हम ध्यान और नींद, समाधि और नींद को एक तराजू पर नहीं तोल सकते। दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। आदमी आधा घंटा का भी ध्यान करता है तो पूरे दिन ऐसा लगता है कि आज कोई ऐसा टॉनिक ले लिया कि सारे दिन आनन्द का अनुभव होता रहता है। नींद में ताजगी आती है, थकान मिटती है, किन्तु उसका प्रभाव बहुत थोड़े समय तक रहता है। ध्यान का प्रभाव समूचे दिन रहता है। ध्यान का स्थायी प्रभाव होता है, नींद का तात्कालिक
और सामयिक प्रभाव होता है। समाधि को और नींद को, समाधि को और मूर्छा को एक कोटि में नहीं रखा जा सकता। मूर्छा में केवल मस्तिष्क के संवेदन-केन्द्र निष्क्रिय बन जाते हैं किन्तु भीतर की सारी क्रिया चालू रहती है। ध्यान में हमारे शरीर की जैविक क्रिया बहुत मन्द हो जाती है, शक्ति का व्यय रुक जाता है। ध्यान करने वाला व्यक्ति, समाधि में जाने वाला व्यक्ति अपनी शरीर की शक्ति को बहुत बचा लेता है, मन की शक्ति को बहुत बचा लेता है। किन्तु मूर्छा में जाने वाला ऐसा नहीं कर पाता।
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