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________________ १६० अप्पाणं सरणं गच्छामि है-संकल्प-नाश, जहां सारे संकल्प समाप्त हो जाते हैं। ध्यान और समाधि में भेद ध्यान और समाधि का यह अन्तर है-ध्यान में इन्द्रियों के विषय सामने आते रहते हैं किन्तु समाधि की अवस्था में न बाहर के विषय आते हैं और न भीतर के विषय आते हैं। हमारी चेतना सर्वथा निरालम्ब हो जाती है, विषय-शून्य हो जाती है। यह विषय-शून्य चेतना, केवल चैतन्य का अनुभव, यह है समाधि की अवस्था। वहां केवल चैतन्य का अनुभव होता है और इस अवस्था में जो पहुंच जाता है वह अन्तर के अनुभव में ही पहुंच जाता है। इसी का काम है-आत्मानुभव, स्वानुभव, चैतन्य का अनुभव, आत्मा का साक्षात्कार या परमात्मा का साक्षात्कार । समाधि और नींद प्रश्न सहज ही होता है कि नींद में भी शब्द सुनाई नहीं देता। आदमी गहरी नींद में होता है, मेघ-गर्जना होती है, पता नहीं चलता, वर्षा हो जाती है, पता नहीं चलता, आंधी आ जाती है, पता नहीं चलता। मनुष्य मूर्छा की अवस्था में होता है तब भी पता नहीं चलता। मादक द्रव्य का प्रयोग किया जाता है, शून्यता ला दी जाती है, संवेदन-केन्द्र निश्चेतन बन जाते हैं। मूर्छा की अवस्था, शून्यता की अवस्था और नींद की अवस्था में पता नहीं चलता, तब इन्हें क्यों न समाधि मान लें। नींद भी एक समाधि है, मूर्छा भी एक समाधि है, और मादक वस्तुओं का प्रयोग किया गया, शुन्यता ला दी गई वह भी एक समाधि है। उनको क्यों नहीं समाधि माने, सहज ही मन में एक जिज्ञासा जागती है। किन्तु जब हम समाधि की अवस्था के साथ इन सबकी तुलना करते हैं तो हमें पता चलता है कि बहुत बड़ा अन्तर है समाधि में और नींद में। नींद और समाधि एक नहीं हो सकती। नींद में हमारा जागृत मन सो जाता है, इसलिए संवेदन-केन्द्र काम नहीं करते और हमें बाहर की घटनाओं का पता नहीं चलता। समाधि में बाहर का मन सोता है किन्तु भीतर का मन, भीतर की चेतना बहुत सक्रिय हो जाती है। इतनी जागरूकता बढ़ जाती है, जितनी पहले कभी नहीं बढ़ती। ध्यान और नींद नींद का मतलब है सो जाना, चेतना का लुप्त हो जाना, बाहर की चेतना का समाप्त होना और भीतर की चेतना का भी नहीं जागना । समाधि का मतलब है बाहर की चेतना का सो जाना किन्तु भीतर की चेतना का बहुत तीव्रता से जाग जाना। इतनी शक्तिशाली बन जाती है चेतना, जितनी पहले कभी नहीं बनी थी। बहुत बड़ा अन्तर है। अभी-अभी वैज्ञानिकों ने ध्यान और नींद का तुलनात्मक अध्ययन किया और बहुत बड़ी खोजें इस विषय में कीं। क्या अन्तर आता है? केवल ध्यान और नींद की तुलना की है, समाधि की नहीं की, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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