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१६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
अधिकार पर जाने की प्यास। तृष्णा एक ऐसी अमिट प्यास होती है जो बुझती ही नहीं, कभी नहीं बुझती। न पानी बुझा सकता है, न कोई द्रव्य बुझा सकता है। दुनिया का कोई भी पदार्थ उस प्यास को नहीं बुझा सकता। वह तृष्णा आदमी को भटकाती रहती है। जब संकल्प का नाश होता है, तब वह प्यास बुझ जाती है। उस प्यास को जिलाता है संकल्प। जब तक संकल्प का सिंचन मिलता है, प्यास कभी नहीं बुझती और जब संकल्प का सिंचन मिलना बंद हो जाता है, वह प्यास अपने आप बुझ जाती है। उसकी जड़ अपने आप सूख जाती है फिर वह हरी-भरी नहीं रहती। समाधि का सबसे बड़ा परिणाम होता है-संकल्प का नाश । संकल्प-नाश का परिणाम होता है-तृष्णा का नाश, कभी नहीं बुझने वाली प्यास का बुझ जाना। बिलकुल समाप्त हो जाना। आप चाहेंगे, ऐसा अनुभव हमें होना चाहिए। कौन व्यक्ति नहीं चाहेगा कि समाधि का अनुभव उसे न हो। कई लोग कहते हैं कि आशीर्वाद दें कि समाधि का अनुभव हो जाए। हर आदमी चाहता है। मैं पहले ही कह चुका। मैं उन लोगों में नहीं हूं जो समाधि का शक्तिपात करने वाले हैं। बस, सिर पर हाथ रखा और समाधि हो गई। मैंने आज तक ऐसे अनेक लोगों को, गुरुओं को देखा है। ध्यान-साधकों को देखा है, जो कुंडलिनी जगाने की और समाधि में जाने की घोषणा तो करते हैं और सिर पर हाथ रखते हैं या पैर पर सिर रखवाते हैं किन्तु समाधि घटित नहीं होती। मुझे लगता है कि जो बात अपने प्रयत्न के द्वारा घटित हो सकती है, हम इस चक्कर में न जायें कि कोई आयेगा और दो मिनट में समाधि लगा देगा। यह भुलावा मात्र होगा और बड़ा मानसिक ढोंग होगा।
राजा श्रेणिक ने रोहक, जो उस जमाने का बड़ा बुद्धिमान व्यक्ति था, से कहला भेजा कि तुम्हारे गांव में जो कुआं है, उसका पानी बहुत मीठा है, उस कुएं को मेरी राजधानी में भेज दो। यहां अगर मीठा कुआं होगा, जनता को बहुत लाभ मिलेगा। कुएं को यहां भेज दो और यह राजाज्ञा है, तुम्हें यह शिरोधार्य करनी होगी। गांववाले घबरा गये। वे सब इकट्ठे हुए। कहा-'रोहक! अब क्या होगा? राजाज्ञा है। उसका पालन नहीं हुआ तो पता नहीं राजा क्या करेगा? गांव का क्या होगा?' रोहक ने कहा-"चिंता मत करो।" रोहक ने एक पत्र लिखा और दूत को देकर बोला-जाओ, राजा को यह मेरा पत्र दे देना। पत्र पहुंचा, राजा ने पढ़ा। पत्र में लिखा था-"महाराजा! हमारा कुआं गांव का कुआं है। गांव का कुआं इतना होशियार नहीं होता है। यह चलना नहीं जानता। राजधानी में रहने वाले बहुत होशियार होते हैं, बड़े दक्ष होते हैं। आप राजधानी का कुआं यहां भेज दें तो गांव का कुआं भी चलना सीख जायेगा और उसके साथ-साथ आपकी राजधानी में पहुंच जायेगा।" ।
मुझे लगता है अगर ऐसा कोई समाधि जगाने वाला मिल जाये कि जो
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