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________________ १५८ अप्पाणं सरणं गच्छामि का हमारे लिए कोई उपयोग नहीं होगा। इसलिए जैन आचार्यों ने एक शब्द का चुनाव किया कि जब समाधि की अवस्था आती है, उसे न अनिन्द्रिय कहा जाता है और न सेन्द्रिय कहा जाता है, किन्तु तीसरे शब्द का प्रयोग करना होगा-नो-इन्द्रिय, नो-अनिन्द्रिय । वहां इन्द्रिय और अनिन्द्रिय-दोनों अवस्थाएं समाप्त हो जाती हैं। इन्द्रिय की चेतना भी समाप्त और मन की चेतना भी समाप्त। इसलिए न समनस्क और न अमनस्क-दोनों अवस्थाएं नहीं। तीसरी अवस्था घटित होती है। उसे कहा जाता है-नो-समनस्क और नो-अमनस्क। यह एक तीसरी अवस्था है। समाधि की अवस्था न इन्द्रिय की अवस्था है, न अनिन्द्रिय की अवस्था है। समाधि की अवस्था न मन की अवस्था है और न अमन की अवस्था है किन्तु समाधि की अवस्था इन दोनों से रहित एक तीसरी अवस्था है। ___महर्षि पतंजलि ने समाधि की अवस्था के लिए एक शब्द का प्रयोग किया- 'अर्थमात्रनिर्भासा', जहां ध्येय छूट जाता है, केवल ध्येय का निर्भास मात्र रह जाता है, कोरा अर्थ रह जाता है। आलम्बन छूट जाता है। कोरा आभास मात्र शेष रह जाता है, वह समाधि की अवस्था है। गोरक्ष पद्धति में बहुत स्पष्ट भेद-रेखा खींची है कि जब तक शब्द सुनाई देता है, इन्द्रियों के विषय आते रहते हैं, संकल्प-विकल्प आते रहते हैं, सूक्ष्म हो जाते हैं, फिर भी आते रहते हैं, वह ध्यान की अवस्था है। जब सारे शब्द आदि समाप्त हो जाते हैं, न बाहर का शब्द और न भीतर का शब्द, न कोई बाहर की आवाज सुनाई देती है और न भीतर में कोई शब्द काम करता है, वह समाधि की अवस्था है। संकल्प-विकल्प और शब्द संकल्प के लिए शब्द जरूरी है। यदि भीतर में शब्द नहीं होगा तो संकल्प नहीं उठेगा। भीतर में शब्द नहीं होगा तो कोई विकल्प नहीं उठेगा। यह संकल्प और विकल्प तभी उठते हैं जब भीतर के शब्द काम करते हैं। जब बाहर के शब्द काम करते हैं तो ध्यान की अवस्था भी पूरी घटित नहीं होती, किन्तु ध्यान जैसे-जैसे सूक्ष्म बनता है, चेतना जैसे-जैसे सूक्ष्म बनती है, वैसे-वैसे बाहरी विषयों में भी परिवर्तन आता जाता है। जो व्यक्ति ध्यान की गहराई में नहीं जाता वह आंखें बन्द करके ध्यान करने के लिए बैठता है तो कोई शब्द भी सुनेगा और शब्द के अर्थ में लग जायेगा। सोचेगा कि क्या कहा? सारी स्थिति उसमें चली जायेगी। ये शब्द बड़े भुलावे में डालने वाले होते हैं। इन्द्रियों के विकास का क्रम है-स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत। इस क्रम से इन्द्रियों का विकास हुआ है। वनस्पति में, स्थावर जीवों में, केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय की चेतना जागती है। द्वीन्द्रिय जीवों में दो इन्द्रिय उपलब्ध होती हैं। उनमें स्पर्शन और रसन की चेतना जागती है। जिनमें तीन इन्द्रियों का विकास होता है, उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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