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चित्त-समाधि के सूत्र (१) १४६
पीछे भी नहीं सरकता, एक स्थान पर खड़ा रहता है। यह है चैतन्य प्रतिष्ठा। जब तक हमारा चैतन्य प्रतिष्ठित नहीं होता, तब तक समाधि की घटना घटित नहीं होती और जब चैतन्य अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब सहज समाधि का अनुभव होने लग जाता है। राग : विराग
चित्त को लुढ़काने वाला, चित्त की गेंद को उछालने वाला है-राग। जितना राग, उतना ही चित्त उछलता रहता है। इसलिए समाधि की साधना करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले विराग का अभ्यास करना होता है। वैराग्य सहज उपलब्ध नहीं होता तो फिर अभ्यास के द्वारा वैराग्य किया जाता है। वैराग्य-भावना समाधि का पहला अभ्यास है। भगवान् महावीर ने कहा-खणमेत सोक्खा बहुकाल दुक्खा। जितनी कामनाएं, लालसाएं और आकांक्षाएं जागती हैं चित्त में, ये क्षण-भर के लिए सुख देती हैं। ये प्रवृत्तिकाल में सुख देती हैं, किन्तु परिणामकाल में दुःख देती हैं। प्रवृत्ति का क्षण छोटा होता है, किन्तु परिणाम का क्षण बहुत बड़ा होता है। जैसे एक छोटी-सी भूल का बहुत बड़ा परिणाम होता है वैसे ही कामना की भूल का छोटा-सा क्षण बहुत बन जाता है परिणामकाल में। सुख का अनुभव बहुत थोड़ा होता है और दुःख का अनुभव बहुत ज्यादा होता है। इस प्रकार का अनुचिंतन, इस प्रकार की भावना, बार-बार का यह अभ्यास करते-करते पदार्थ के प्रति राग कम होने लगता है और मन में वैराग्य का अंकुर फूटने लगता है। प्रतिपक्ष की भावना __ प्रतिपक्ष की भावना एक बहुत बड़ा सूत्र है साधना का। जिन-जिन कारणों से राग उत्पन्न होता है उनके प्रतिपक्षी साधनों का अभ्यास करने से विराग उत्पन्न होता है। प्रतिपक्ष भावना का अभ्यास करें और तृप्ति का अनुभव करें। बहुत बड़ा संकट है अतृप्ति। मनुष्य दो बिंदुओं पर संघर्ष करता है जीवन में। एक बिन्दु है शारीरिक अतृप्ति का और दूसरा है मानसिक अतृप्ति का। हमारी तृप्ति शुरू होती है शारीरिक आवश्यकताओं के साथ। हमें जो शरीर उपलब्ध है उसमें एक वृत्ति है-भूख। यह हमारी मौलिक मनोवृत्ति है। एक वृत्ति है काम। यह भी मौलिक मनोवृत्ति है। ये दोनों मनोवृत्तियां संघर्ष के लिए परिस्थितियां निर्मित करती हैं। भूख शरीर की जीवित अपेक्षा है। उसके कारण मनुष्य को कितना संघर्ष करना पड़ता है। यदि भूख नहीं होती तो हमारी प्रवृत्तियां सिमट जातीं। ये इतने बड़े-बड़े व्यवसाय, धन्धे, काम, इतने प्रयत्न नहीं चलते यदि भूख की वृत्ति नहीं होती। किन्तु भूख की आग को बुझाने के लिए मनुष्य को कितना प्रयत्न करना पड़ता है। दूसरी प्रवृत्ति है-काम। कामना की पूर्ति के लिए मनुष्य को कितना करना पड़ता है। भूख अतृप्ति पैदा करती है। कुछ
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