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१४८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
समाधि का क्रम
समाधि के क्रम में सबसे पहला क्रम है-वैराग्य-भावना का विकास। जो व्यक्ति समाधि को उपलब्ध होना चाहता है, समाधि की साधना करना चाहता है और चाहता है मन की अशांति मिटे, कठिनाइयां मिटें, उलझनें मिटें, चित्त स्थिर हो जाये, उसे एक क्रम से साधना करनी पड़ती है। हजारों-हजारों परिस्थितियों के आ जाने पर भी चित्त विचलित न हो, प्रकम्पित न हो, यह हो सकता है। यह न मानें कि समस्या आयी और चित्त विचलित हो गया। समस्या के आने पर चित्त विचलित नहीं भी होता। किन्तु चित्त शक्तिशाली नहीं होता इसलिए विचलित हो जाता है। चित्त तरल होता है, जो कुछ भी मिलता है उससे वह गंदला बन जाता है। पानी तरल है, उसमें जो कुछ भी मिला, वह गंदला बन जाता है। बर्फ जम गई। आप उस पर कोई गंदी चीज भी डालें तो लुढ़ककर नीचे चली जायेगी। गंदा पानी डालें तो भी उसमें मिलेगा नहीं, वह बहकर नीचे चला जायेगा, क्योंकि पानी जम गया। जमने के बाद उसमें घुलनशीलता नहीं रहती। वह अपने में कुछ भी मिश्रित नहीं कर पाता। जब तक हमारा चित्त चंचल होता है, सामने जो घटना घटित होती है, चित्त उसे पकड़ लेता है और विचलित हो जाता है, गंदला हो जाता है और वैसा ही बन जाता है जैसी घटना सामने घटित होती है। किन्तु जब चित्त जम जाता है, उसकी तरलता समाप्त हो जाती है, फिर सामने चाहे जैसी घटना घटे, वह उसमें घुलता नहीं और उसे पकड़ता भी नहीं, उस जैसा नहीं बनता किन्तु अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित रहता है। पारा चंचल होता है। पारे को पकड़ने का प्रयत्न करें, वह आगे सरक जाएगा। ___मन की तुलना पारे से की जा सकती है। दुनिया में और कोई चीज इतनी चंचल नहीं होती जितना पारा चंचल होता है। वह किसी का स्पर्श नहीं चाहता। वह आगे से आगे सरकता चला जाता है, गतिशील होता चला जाता है। उसकी गोली बन जाती है, फिर पकड़ में आ जाता है। उसकी चंचलता समाप्त हो जाती है। जब तक चित्त में चंचलता होती है, हर घटना उसे पकड़ती रहती है। जैसे फुटबाल इधर से उधर, उधर से इधर लुढ़कता रहता है, उछलता रहता है, चोट खाता रहता है, कभी ऊपर जाता है, कभी नीचे आता है, ठीक यही दशा चित्त की भी होती है। किन्तु जैसे पारा बंध जाता है, वैसे ही चित्त भी बंध जाता है। तब चित्त की शक्तियां क्षीण कम होती हैं, संचित ज्यादा होती हैं। जब चित्त शक्तिशाली बनता है, सम्यक् साधनों और सम्यक् उपायों के द्वारा तब वह स्थिर हो जाता है और स्थिर बना हुआ चित्त फिर फुटबाल की तरह इधर-उधर नहीं उछलता, पारे की तरह कांपता नहीं, किन्तु जमकर रह जाता है। वह घटना को देखता है, पर घटना के स्पर्श से आगे नहीं उछलता,
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