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________________ . १५० अप्पाणं सरणं गच्छामि खाया-पीया, तृप्त हो जाता है आदमी। शरीर के स्तर पर हमारी अतृप्ति को भरना बहुत जटिल काम नहीं है। किन्तु वह अतृप्ति जब मानसिक स्तर पर पहुंच जाती है, वहां मनुष्य को बहुत संघर्ष करना पड़ता है, अनेक महायुद्ध लड़ने पड़ते हैं। मानसिक स्तर पर आदमी न जाने कितने विश्वयुद्ध लड़ता है और कितना संघर्ष का सामना करता है। मन की अतृप्तियां कितनी बढ़ जाती हैं। यदि मानसिक अतृप्तियां नहीं होती तो धर्म की बात आदमी को नहीं सूझती। यदि मानसिक अतृप्ति नहीं होती तो समाधि का सूत्र आदमी को उपलब्ध नहीं होता। मानसिक अतृप्ति ने मनुष्य को इतना व्यथित बना दिया, इतना संकट में डाल दिया कि वह अतृप्ति भरती ही नहीं है। मनुष्य ने सोचा कि यह अतृप्ति पदार्थ के द्वारा नहीं मिट सकती। इसका कोई दूसरा ही उपाय होना चाहिए। खोज शुरू हुई। खोज करते-करते पता चला कि मन की अतृप्ति को मिटाने की शक्ति पदार्थ में नहीं है। मन की अतृप्ति को मिटाने की शक्ति विराग में है, वैराग्य में है। यह वैराग्य का पहला सूत्र उपलब्ध हुआ मानसिक अतृप्ति की उलझनों के कारण। ___मन की दो भूमिकाएं हैं-एक है क्षिप्तावस्था और दूसरी हैविक्षिप्तावस्था। पहले चंचलता होती है और चंचलता जब अधिक बढ़ जाती है तब आदमी विक्षिप्त होता है, पागल जैसा बन जाता है। पहले चंचलता बढ़ी। जैसे-जैसे अतृप्ति बढ़ी, चंचलता बढ़ी। जब अतृप्ति और बढ़ी, चंचलता और ज्यादा बढ़ी। चंचलता जब और अधिक बढ़ी, तो आदमी विक्षिप्त होने लगा, पागल होने लगा। जब आदमी ने सोचा कि अतृप्ति इतनी बढ़ गई है कि चंचलता भी सीमा पार कर रही है और मानसिक पागलपन हो रहा है, उस स्थिति में सोचना पड़ा कि कोई ऐसा उपाय होना चाहिए जिससे कि यह विक्षिप्तता मिट सके, पागलपन मिट सके। उपाय खोजा गया। अध्यात्म के क्षेत्र में उपाय मिला वैराग्य। यदि वैराग्य का अभ्यास किया जाए तो यह विक्षिप्तता मिट सकती है, पागलपन मिट सकता है। वैराग्य से चंचलता मिट सकती है, यह क्षिप्तावस्था समाप्त हो सकती है। यदि क्षिप्तावस्था समाप्त हो सकती है, तो विक्षिप्तावस्था भी समाप्त हो सकती है। चंचलता मिट सकती है और पागलपन मिट सकता है। विक्षेप की दिशा : चैतन्य की दिशा जीवन की दो दिशाएं हैं। एक दिशा है विक्षेप की ओर जाने की तथा दूसरी दिशा है चैतन्य की ओर जाने की। आदमी जैसे-जैसे बाहर में गया, उसका आकर्षण जैसे-जैसे बाहर में बना, चंचलता बढ़ती गई, पागलपन बढ़ता चला गया। बाहर में जाने का अर्थ है-चंचलता बढ़ाना। बाहर में जाने का अर्थ है, पागलपन बढ़ाना। जिन लोगों ने केवल बाहर जाने का अर्थ ही समझा है, जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org WW
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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