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समाधि : साध्य या साधन १४३
हो जाएंगे'। इन्द्र ने अपने देव-बल से गांव के बाहर स्वर्ण के ढेर लगा दिए। लोग गए। जितना चाहा उतना स्वर्ण ले आए। सबके पास सोना हो गया। सब समान हो गए। सेठ के पास भी सोने का ढेर है और नौकर के पास भी सोने का ढेर है। अब कोई नौकर नहीं रहा, कोई कर्मचारी या सेवक नहीं रहा। सेठ बैठे हैं, नौकर और मुनीम गायब । व्यापार बंद हो गया। कौन बेचे और कौन खरीदे। राजा के सभी कर्मचारी घर पर आ गए। कोई सैनिक सेना में नहीं रहा । सब मालामाल हो गए थे। राजा अकेला, सेठ अकेला, सेठानी अकेली। कोई पानी पिलाने वाला भी नहीं बचा। रसोई कौन पकाए? बाजार से माल कौन लाये? घर की सफाई कौन करे? सबके लिए मुसीबत हो गई। सब दुःखी हो गए। सारी जनता इन्द्र को गालियां देने लगी। इन्द्र ने सबको दुःखी बना डाला। इन्द्र और इन्द्राणी पुनः उसी गांव में आए। जनता के दुःखों की आवाज सुनी। इन्द्राणी ने कहा-क्या आपने सबको सुखी बना डाला? इन्द्र ने घूम-घूमकर देखा। सब अपने आपको दुःखी बतला रहे थे। इन्द्र जहां भी गया-गालियां पड़ी।
समता अपच होती है। आदमी समता को पचा नहीं सकता। पदार्थ की दुनिया में जीने वाला व्यक्ति विषमता चाहता है, समता नहीं। वह चाहता है, एक बड़ा बना रहे, दूसरा छोटा । एक स्वामी बना रहे, दूसरा सेवक। एक आदेश देने वाला हो, दूसरा आदेश मानने वाला। ___ यह सारा वैभव, ठाट-बाट और सम्पन्नता के आधार पर टिकी हुई है। कोई निर्धन नहीं है तो धनी होने का कोई प्रयोजन नहीं है। कोई विपन्न नहीं है तो सम्पन्न होने का अर्थ ही नहीं रहता। फिर हम कम्युनिस्ट को साम्यवादी, कम्युनिज्मको साम्यवाद कैसे कह सकते हैं? कम्यून का अर्थ होना चाहिए समूह। कम्युनिज्म अर्थात् समूहवाद । किन्तु कम्यून के लिए साम्य का प्रयोग करना बिलकुल गलत प्रयोग है। हमारी भ्रान्ति हो गयी। क्या साम्यवादी शासन-प्रणाली में साम्य मिलेगा, नहीं मिल सकता। साम्य का दर्शन केवल अध्यात्म में ही हो सकता है। पदार्थ जगत् में कभी साम्य का दर्शन नहीं हो सकता और साम्य सहा भी नहीं जा सकता। पानी में आग
पदार्थ की प्रचुरता के कारण एक पागलपन बढ़ता है, एक अतृप्ति बढ़ती है और ऐसी अतृप्ति बढ़ती है कि जिसको बुझाने का कोई साधन नहीं होता। जब तक पदार्थों की कमी होती है, तब तक अतृप्ति थोड़ी होती है। यह भी एक उल्टा नियम है। इसे समझें। पदार्थों का प्राचुर्य नहीं होता, बहुलता नहीं होती तब तक अतृप्ति कम होती है। जब पदार्थों की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, तो अतृप्ति की मात्रा भी बढ़ जाती है। फिर इसे मिटाने का कोई साधन
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