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१४४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
नहीं मिलता। आदमी को पागल होना पड़ता है । हम देख चुके हैं अनुभव के आधार पर कि जिन देशों ने पदार्थों की सीमा का अतिक्रमण कर दिया, इतने पदार्थ विकसित कर लिये कि भौतिकता चरम बिन्दु तक पहुंच गई, वहां पागलपन भी बहुत बढ़ रहा है। क्योंकि उनकी अतृप्ति को पदार्थों के द्वारा नहीं बुझाया जा सकता। आग को पानी के द्वारा बुझाया जा सकता है किन्तु जो आग पानी में लग जाती है, फिर उस आग को पानी के द्वारा नहीं बुझाया जा सकता । समुद्र की अग्नि होती है बड़वानल । उसको पानी से नहीं बुझाया जा सकता। चाहे कितना ही पानी डालें, पानी में ही आग लगी हुई है, तो पानी क्या करेगा? जब पदार्थ की प्रचुरता के कारण मानसिक अतृप्ति होती है, वह इतनी बढ़ जाती है कि पदार्थ उसे नहीं मिटा सकता। उसमें मिटाने की क्षमता नहीं रहती । पदार्थ व्यर्थ और बेकार हो जाते हैं । उस स्थिति में, उस अतृप्ति को मिटाने के लिए एक तृप्ति का बिन्दु खोजा जाता है ।
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तृप्ति का बिन्दु
तृप्ति का बिन्दु है - वैराग्य । उसी के परिपार्श्व में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का विकास हुआ। इसलिए भगवान् महावीर ने कहा- ये मूल गुण हैं पांचों | ध्यान भी उत्तर गुण है। यानी बाद में होने वाला है । समाधि भी उत्तर गुण है, बाद में होने वाली है । तपस्या भी बाद में होने वाली है । सब उत्तर गुण हैं । मूल गुण हैं - पांच महाव्रत ।
क्रमिक आरोहण
ये पांच महाव्रत पहले होते हैं तो समाधि का विकास आगे बढ़ता जाता है । सामायिक का पहला बिन्दु है - पांच महाव्रत । समता का पहला बिन्दु है-पांच महाव्रत । ये नहीं होते हैं तो फिर अग्रिम विकास नहीं हो सकता । महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का प्रतिपादन किया। उन आठ अंगों में पहला अंग है - यम । यम के बाद फिर नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । ये चलते हैं । जब यम ही घटित नहीं होता तो समाधि, जो आठवां अंग है, कैसे घटित होगा ? हमारे आज के आधुनिक भगवान्, बड़े-बड़े ध्यान के प्रयोग करवाने वाले कहते हैं - यम की कोई आवश्यकता नहीं, नियम की कोई आवश्यकता नहीं, महाव्रतों की कोई आवश्यकता नहीं, समाधि हो जायेगी । यम से समाधि नहीं होगी, सम्भोग से समाधि हो जायेगी । विचार का बहुत बड़ा अन्तर है । एक ओर महाव्रत पहला बिन्दु है और उसका विकास होते-होते समाधि की घटना घटित होती है। दूसरी ओर यम व्यर्थ, महाव्रत व्यर्थ, ब्रह्मचर्य व्यर्थ, अहिंसा व्यर्थ, सम्भोग पहला बिन्दु और उससे समाधि की घटना घटित होती है। विचार की इतनी दूरी है कि इस दूरी को कभी नहीं पाटा जा सकता। हम इस बात में विश्वास करते हैं कि महाव्रतों की साधना के बिना, समता
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