________________
१४२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
किसी के प्रति हमें विराग करने की जरूरत नहीं होती। बार-बार दोहरा रहा हूं-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श । बस, सारा पदार्थ जगत् समाप्त। इन पांचों के प्रति विराग की जरूरत है और छठा कोई नहीं है। वैराग्य शुरू करें। इसी वैराग्य की साधना के लिए सामायिक का, समता का और संयम का उपदेश दिया गया। शब्द आदि के जगत् से अलग होने के लिए यह सारा उपदेश दिया गया। समता, संयम बहुत प्रिय शब्द हैं, किंतु वैराग्य के बिना समता घटित नहीं होती। वैराग्य के बिना संयम घटित नहीं होता। कम्युनिज्म का गलत अर्थ ___'कम्युनिस्ट' शब्द का अनुवाद किया साम्यवादी । कम्युनिज्म का अनुवाद किया साम्यवाद। शब्दों का कभी-कभी बड़ा गलत चुनाव हो जाता है। पदार्थ-जगत में आसक्त रहने वाले व्यक्ति के लिए, 'साम्यवादी' और पदार्थ से संबद्ध वाद के लिए 'साम्यवाद'--ये शब्द कैसे संगत हो सकते हैं? समता, साम्य, साम्यवाद पदार्थ जगत् में घटित नहीं होते। आध्यात्मिक जगत् में समता की घटना घटती है तो आदमी आनन्द से भर जाता है और पदार्थ के जगत् में समता की घटना घटती है तो आदमी दुःखी बन जाता है। मुझे एक पौराणिक कहानी याद आ रही है।
एक बार इन्द्र और इन्द्राणी के बीच में वाद-विवाद हो गया। वाद-विवाद होना तो हमारी दुनिया का नियम है। हम जिस दुनिया में जीते हैं वहां वाद
और विवाद न हो तो दुनिया ही समाप्त हो जाएगी। शायद जीवन में यह सरसता वाद और विवाद के कारण ही चलती है। पति-पत्नी जब लड़ नहीं लेते हैं तब यह मानते हैं कि जीवन रूखा-सा हो गया। एक बार लड़ते हैं तो अनुभव करते हैं कि थोड़ा सरस जीवन फिर शुरू हो गया। एक प्रकार का जीवन जीते-जीते ऊब-सी आ जाती है तब नया जीवन जीने की शुरूआत करना चाहते हैं। और नये जीवन की शुरुआत का अर्थ है कि पहले लड़कर थोड़े दूर हो जाओ और फिर समझौता करके और निकट हो जाओ। यह वाद और विवाद हमारी दुनिया का नियम है। इस भौतिक जीवन का नियम है। इन्द्र और इन्द्राणी के बीच में भी वाद-विवाद शुरू हो गया। इन्द्र ने कहा- “तुम मेरी शक्ति को नहीं जानती। मैं सबको सुखी बना सकता हूं। मैं चाहूं तो सबको दुःखी बना दूं।" इन्द्राणी ने कहा-“झूठा गर्व करते हो। इस दुनिया में कोई ऐसा आदमी नहीं, जो सबको सुखी बना सके।" वाद-विवाद बढ़ा। इन्द्राणी ने कहा-आप अपनी बात को प्रमाणित करें। इन्द्र-इन्द्राणी दोनों एक नगर में आए। राजा से मिले। जनता से मिले। अपना परिचय देकर कहा-हम सबको सुखी बनाना चाहते हैं। तुम जो मांगो, वह मिलेगा। जनता ने सुना। वह आनन्द-विभोर हो उठी। एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा- 'संसार में सुख है सोना, स्वर्ण। आप हमें स्वर्ण दे दें, हम सुखी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org