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१४० अप्पाणं सरणं गच्छामि
एक व्यक्ति की छलांग से नियम नहीं बना सकते। नियम अलग होता है। मैं मानता हूं, हर घटना का नियम अलग होता है। अध्यात्म की साधना का अपना नियम है, पदार्थ की साधना का अपना नियम है। भौतिक जगत् के अपने नियम हैं और अध्यात्म जगत् के अपने नियम हैं। हम जिसकी सीमा में काम करें, उसके नियमों को समझें।
आदमी वायुयान की यात्रा पर चला। वायुयान आकाश में उड़ा। सब लोग शान्त बैठे हैं। एक भोला आदमी था। पहली बार यात्रा कर रहा था। नियमों का पता नहीं था। खड़ा हो गया तत्काल । सब लोग बैठे हैं। वह खड़ा हुआ और वायुयान में बहुत तेजी से चलने लगा। लोगों ने पूछा-अरे! क्या कर रहे हो? यह क्या अभिनय कर रहे हो? उसने कहा-आपको पता नहीं, मुझे जल्दी जाना है। बहुत जरूरी काम है। लोगों ने कहा-यह वायुयान है। तुम स्थल पर नहीं चल रहे हो। तुम कितना ही जल्दी चलो, पहुंचोगे हमारे साथ ही, जल्दी नहीं पहुंच पाओगे।
वायुयान का अपना नियम होता है और थल-यात्रा का अपना नियम होता है। थल पर तेज चलने वाला आगे जा सकता है, जल्दी जा सकता है, पर जो रेल की यात्रा कर रहा है, वायुयान की यात्रा कर रहा है, वह कितना ही जल्दी चले, सब के साथ पहुंचेगा, पहले नहीं पहुंच पायेगा। अपना-अपना नियम
सबका अपना-अपना नियम होता है। साधना का अपना नियम है, समाधि का अपना नियम है। समाधि का नियम है-विराग, वैराग्य। वैराग्य तब घटित होगा जब शरीर से हमारा साक्षात्कार होगा। जिस व्यक्ति ने शरीर का साक्षात्कार नहीं किया, जिस व्यक्ति ने शरीर का संवेद-दर्शन नहीं किया वह व्यक्ति वैराग्यवान् नहीं हो सकता। शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के प्रति उसी व्यक्ति के मन में विराग जाग सकता है जिसने शरीर में घटित होने वाली सारी घटनाओं का साक्षात्कार किया है। उस साक्षात्कार के बिना वैराग्य भी नहीं हो सकता और जब वैराग्य नहीं होता तो आत्मा का दर्शन भी नहीं हो सकता। राग का अर्थ है-पदार्थ जगत् का साक्षात्कार और वैराग्य का अर्थ है-आत्मा का साक्षात्कार । दो भिन्न दिशाएं हैं। एक दिशा पदार्थ जगत् की ओर, शब्द आदि विषयों की ओर जाती है और दूसरी दिशा चैतन्य की ओर जाती है। दोनों दिशाओं में जो भेद-रेखा है, उसे समझे बिना हम समाधि की बात भी नहीं कर सकते, आत्म-साक्षात्कार की बात भी नहीं कर सकते। समाधि : साध्य या साधन
प्रश्न है कि यह समाधि साधन है या साध्य? साधन और साध्य कभी दो नहीं होते। साधन और साध्य में दूरी नहीं होती। उनमें द्वैत नहीं होता। एक
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