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समाधि : साध्य या साधन १३६
कोई दुःख नहीं होता । अनुभव की बात है । बहुत बार ऐसे लोगों को देखा है कि जिनके पास लाखों की सम्पदा भी नहीं है, पांच-दस हजार रुपये चले गये, फिर भी प्रसन्न हैं । कहते हैं - क्या है? श्रम किया, कमाया, चला गया। फिर श्रम करेंगे, कमा लेंगे। बात समाप्त। ऐसे लोगों को भी देखा है जो करोड़पति हैं। सौ रुपया भी इधर-उधर हो गया तो उनकी नींद हराम हो गई । एक करोड़पति भाई मेरे पास बैठा था । उसके सौ रुपये खो गए थे। वह अत्यंत उदास और खिन्न था, मैंने पूछा- ऐसा क्या हो गया जो तुम इतने चिंतातुर हो ? उसने कहा - महाराज ! क्या करूं आदत ही ऐसी है मेरी । मैं जानता हूं, मेरे लिए सौ रुपयों का कोई मूल्य नहीं है । परंतु प्रश्न पैसे का नहीं, प्रश्न आदत का है ।
एक आदमी लड़ने लगा। इतनी तेज लड़ाई कर दी कि रास्ते में जाने वाले लोग इकट्ठे हो गये और बोले - ' अरे भाई ! क्या बात है ? क्यों लड़ रहे हों ?" उसने कहा - इसने मेरा एक पैसा रख लिया । अरे, इतनी छोटी बात के लिए लड़ रहे हो। उसने कहा- प्रश्न छोटी-बड़ी बात का नहीं, प्रश्न है पैसे का । पैसा पैसा है ।
प्रश्न है आदत का । मनुष्य की जैसी आदत बन जाती है, वह अपनी आदत के कारण सुख पाता है और आदत के कारण दुःख पाता है, पदार्थ के कारण सुख-दुःख नहीं पाता । आदत को बनाने वाले घटक, आदत का निर्माण करने वाले तत्त्व हमारे रसायन हैं। हमारे शरीर में पैदा होने वाले रसायन, हमारी ग्रंथियों से स्रवित होने वाले रसायन, हमारी आदतों का निर्माण करते हैं । जब तक हम शरीर- प्रेक्षा के द्वारा हमारे भीतर में होने वाले रसायनों का साक्षात्कार नहीं करते, तब तक आत्मा का साक्षात्कार कैसे होगा? कभी सम्भव नहीं लगता । आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया
हम एक क्रम से चलें । स्थूल से चलें। पहले शरीर के स्थूल - कम्पनों का साक्षात्कार करें, फिर शरीर के भीतर होने वाले सूक्ष्म परिणामों का साक्षात्कार करें, रसायनों का साक्षात्कार करें, शरीर को संचालित करने वाली विद्युत् का साक्षात्कार करें, फिर उन सबको संचालित करने वाली प्राण-धारा का साक्षात्कार करें। जब इन सबका साक्षात्कार करते हैं तो सूक्ष्म शरीर का साक्षात्कार होने लग जाता है और जब सूक्ष्म शरीर का साक्षात्कार होने लगता है तो अतिसूक्ष्म शरीर में होने वाले प्रकम्पनों का भी साक्षात्कार होने लगता है, कर्म - संस्कारों का साक्षात्कार होने लग जाता है। जब उनका साक्षात्कार होने लगता है तो फिर चैतन्य का साक्षात्कार होता है, आत्मा का दर्शन होता है । हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलें । एक प्रक्रिया के साथ चलें । छलांग की बात न करें। छलांगों से काम नहीं होगा, प्रक्रिया से होगा। हो सकता है कि सौ में एक व्यक्ति छलांग भी लगा दे, किन्तु निन्यानवें व्यक्ति छलांग नहीं भर सकते ।
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