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________________ १३८ अप्पाणं सरणं गच्छामि पड़ेगा। सब खुल जायेंगे तब आत्मा का साक्षात्कार होगा। हमारे चैतन्य के कण-कण पर, चैतन्य के प्रत्येक प्रदेश पर अनन्त-अनन्त कर्म के परमाणु चिपके पड़े हैं। जो चंचलता के परमाणु चिपके पड़े हैं वे हमारी चंचलता को बढ़ाते हैं। इन सारे वलयों को जब तक हम नहीं तोड़ पायेंगे और उन्हें प्रकम्पित नहीं कर पायेंगे, तब तक आत्मा का साक्षात्कार नहीं होगा। आत्मा का साक्षात्कार करने के लिए हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रयाण करना होगा। स्थूल से चलें और सूक्ष्म तक पहुंचे। आप पहले ही क्षण में स्थूल से सूक्ष्म तक पहुंच जाना चाहते हैं, बहुत अजीब बात है। आज ही अभ्यास शुरू किया और आज ही सूक्ष्म तक पहुंच जाना चाहते हैं। आज ही तो यात्रा प्रारम्भ की, पहले क्षण में तो यात्रा प्रारम्भ की और दूसरे क्षण में ही मंजिल तक पहुंच जाना चाहते हैं, यह संगत बात नहीं होती। ऐसा कभी संभव नहीं होता। हर यात्रा का एक क्रम है। वाहन चाहे कितना ही द्रुतगामी क्यों न हो, चाहे कितनी ही शक्ति से चलने वाला क्यों न हो, उसकी गति का क्रम होता है। समय लगता है। रेल को कुछ घंटे लगते हैं, वायुयान को कुछ मिनट लग सकते हैं और बैलगाड़ी हो तो और ज्यादा घंटे लग सकते हैं। एक क्रम होता है। ऐसा तो नहीं होता कि वायुयान पर अभी चढ़ें, पहले क्षण चढ़े और दूसरे क्षण में लन्दन पहुंच जाएं। रसायन हैं घटक आवेगों के हम शरीर को पहले देखें, शरीर का साक्षात्कार करें। शरीर में अनन्त-अनन्त पर्याय घटित हो रहे हैं। हजारों-हजारों परिणमन हो रहे हैं। हजारों घटनाएं घटित हो रही हैं। उनको हम जानें, देखें। आदमी हंसता है तो हमें यह पता होना चाहिए कि हंसता इसलिए है कि हंसाने वाला एक रसायन शरीर में बना है। आदमी रोता है, इसलिए रोता है कि रुलाने वाला रसायन भी शरीर में बन गया। आदमी चिंता का भार ढोता है, इसलिए ढोता है कि चिंता करने वाला रसायन भी शरीर में बन गया। हम यह न मानें कि कोई चीज खो गई है और आदमी चिंता से दब गया। कभी नहीं होता। किसी चीज के आने से आदमी प्रसन्न नहीं होता और चली जाने से अप्रसन्न नहीं होता। हम यह मानते हैं कि कुछ मिलता है तो हर्ष होता है, सुख होता है, और पदार्थ चले जाते हैं तो हमें दुःख होता है, चिन्ता होती है। यह सत्य पर एक आवरण है। पदार्थ के मिलने पर सुख नहीं होता और पदार्थ के चले जाने पर दुःख नहीं होता। यह होता है हमारे रसायनों के कारण। एक प्रकार का रसायन बनता है। पदार्थ मिल गया तो भी हर्ष नहीं होगा, सुख नहीं होगा। चिंता मिटेगी नहीं, शोक मिटेगा नहीं, चिंताओं का भार बना का बना रहेगा। मिल गया, फिर भी कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। पदार्थ मिला, पर मिलने के साथ-साथ मन में ऐसे विकल्प जाग गये जिनसे मन अधिक भारी बन गया, दुःखी बन गया। पदार्थ चला गया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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