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________________ समाधि : साध्य या साधन १३७ का दर्शन ही परमात्मा का दर्शन है और परमात्मा का दर्शन ही आत्मा का दर्शन है। आत्मा के साक्षात्कार और परमात्मा के साक्षात्कार में कोई अन्तर नहीं, केवल भाषा का अन्तर हो सकता है। बड़ी जिज्ञासा है परमात्म-दर्शन की, आत्म-दर्शन की। किंतु जो व्यक्ति अपने शरीर का ही दर्शन नहीं करता, वह आत्मा का दर्शन कैसे करेगा। जिसने दरवाजा ही नहीं देखा वह भीतर का दर्शन कैसे करेगा, भीतर में कैसे देखेगा? जिसने सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयत्न ही नहीं किया वह और कुछ क्या करेगा, आगे कैसे चढ़ेगा? किसी ने आचार्य भिक्षु से कहा-आप लोगों को आत्म-दर्शन की बात बताएं, तत्त्व-ज्ञान सिखाएं। आचार्य भिक्षु ने कहा-कोई निकट आये तब तो आत्म-दर्शन कराने की, तत्त्व को समझाने की बात होगी। कोई निकट ही न आये, दूर-दूर रहने से क्या होगा? जब हम आत्म-दर्शन चाहते हैं, तो आत्म-दर्शन का जो उपाय है उसके निकट तो जायें। आत्म-दर्शन की प्रक्रिया आत्म-दर्शन का पहला उपाय है-शरीर को देखना। जिस व्यक्ति ने शरीर को देखना नहीं सीखा, वह आत्म-दर्शन नहीं कर सकता। आप सोचेंगे, शरीर को तो रोज देखते हैं। ऐसे भी देखते हैं, सारा शरीर दिखाई देता है। और इससे संतुष्टि नहीं होती है तो शीशा सामने रखकर देखते हैं। आदम-कद शीशा सामने रखते हैं, पूरा शरीर दिख जाये। यह देखना देखना नहीं है। शरीर को देखना भी एक कला है। उसको देखने की एक विधि है। जब तक शरीर को देखने की विधि को नहीं जानते, केवल चमड़ी को देख सकते हैं, रंग-रूप को देख सकते हैं, आकार-प्रकार को देख सकते हैं, बनावट को देख सकते हैं, किंतु शरीर को नहीं देख सकते। शरीर को तब देख सकते हैं जब शरीर-प्रेक्षा का अभ्यास करें। जो व्यक्ति शरीर-प्रेक्षा का अभ्यास नहीं करता, वह शरीर को नहीं देख सकता। एक-एक अवयव पर चित्त को ले जायें। बाहर और भीतर चित्त को टिकायें, एकाग्र करें। शरीर के भीतर जो प्राण के प्रकम्पन हो रहे हैं, जो रसायन काम कर रहे हैं, जो विद्युत् काम कर रही है, उसे देखें। शरीर के भीतर कितना परिवर्तन हो रहा है-कभी जैविक-रासायनिक परिवर्तन, कभी कर्म के विपाक से होने वाले परिवर्तन, कभी सर्दी और गर्मी के कारण होने वाले परिवर्तन, कभी भोजन आदि के द्वारा होने वाले परिवर्तन-इस सबको हम देखें। इन सारे परिवर्तनों को जब तक हम नहीं देख पाते, तब तक आत्म-दर्शन की बात नहीं होती। इस शरीर में आत्मा तो बहुत आगे है। उस पर तो न जाने कितने अवरोध जमे पड़े हैं। उन सब को देखे बिना उस सूक्ष्म सत्य को, परम सूक्ष्म सत्य को नहीं देख सकते, उसका साक्षात्कार नहीं कर सकते। हमें सारे दरवाजों को, सारे तालों को और सारी खिड़कियों को खोलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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