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________________ १३४ अप्पाणं सरणं गच्छामि ऐसे ही आंखें बन्द कर बैठ जाते हैं। मैंने कहा-अभी तो दस वर्ष ही बीते हैं, यदि पचास वर्ष भी इस प्रकार बैठे रहें तो एकाग्रता नहीं आएगी, मन शान्त नहीं होगा। आप मुड़कर देखेंगे तो पता लगेगा कि आप उसी पदचिह्न पर खड़े हैं जहां पहला पदचिह्न अंकित किया था। कुछ भी आगे नहीं बढ़ पाए। ध्यान ही क्या, प्रत्येक साधना विधि से ही सफल होती है। नियंत्रण का क्रम समाधि की विधि का पहला सूत्र है-श्वास-नियंत्रण। श्वास पर जब नियंत्रण सध जाता है तब इन्द्रियों के संवेदन-केन्द्रों पर सहज नियंत्रण हो जाता है। संवेदन-केन्द्रों पर नियंत्रण करने पर विचार-नियंत्रण अपने आप हो जाता है। विचार की चंचलता को बढ़ाने वाले हैं-संवेदन। जब संवेदन आते हैं तब वैचारिक चंचलता बढ़ती है और तब मन को चंचल होना पड़ता है। जब संवेदन-केन्द्रों पर नियंत्रण हो जाता है तब विचारों पर नियंत्रण हो जाता है और जब विचार नियंत्रित हो जाते हैं तब मन की चंचलता मिट जाती है। जब संवेदन और विचार नियंत्रित होते हैं तब संवेग-नियंत्रण स्वतः प्राप्त हो जाता है। इन सब नियंत्रणों से भीतरी स्राव बदल जाते हैं, रासायनिक परिवर्तन घटित होता है। कर्मशास्त्रीय भाषा में कहें तो कर्म-विपाक बदलने लग जाता है। कर्म के चार कार्य हैं-१. स्वभाव का निर्माण, २. काल-मर्यादा का निर्माण, ३. रस-विपाक का निर्माण, ४. योग्य परमाणुओं का संग्रह । जब आन्तरिक परिवर्तन होने लगते हैं तब रसायन बदल जाता है। जब संवेदन, विचार और संवेगों पर नियंत्रण हो जाता है तब आदमी भीतर में पूरा जाग जाता है और बाहर का दरवाजा बंद हो जाता है। इस स्थिति में समाधि स्वतः घटित होने लगती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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