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________________ संयम और समाधि १३३ और स्वभाव को भी नहीं बदला जा सकता। यदि थायराइड ग्लैण्ड, कंठमणि स्वस्थ नहीं है तो क्रोध की मात्रा बढ़ जाएगी, और भी अनेक प्रकार की वृत्तियां बढ़ जाएंगी। भीतर में कैसे बदलें? ___हमें भीतर में बदलना है। हम भीतरी परिवर्तन का अभ्यास करें। हमें बाहर में बचना है और भीतर में बदलना है। यह तभी संभव है जब हम भीतरी जैव-रसायनों में परिवर्तन लायें। ग्रन्थियों के स्राव जैविक रसायन हैं। इनको बदलना है। विद्युत् प्रवाह को बदलना है। प्राणधारा को बदलना है। यह परिवर्तन ध्यान, एकाग्रता, संयम और श्वास-नियंत्रण से घटित होता है। सबसे पहले श्वास-नियंत्रण आवश्यक होता है। जब हम श्वास को लंबा करना सीख लेते हैं, उसका प्रभाव स्वायत्त-तंत्रिका तंत्र पर होता है। उसकी गति भी प्रभावित होती है। श्वास का संबंध ऐच्छिक और अनैच्छिक-दोनों प्रकार की तंत्रिका तंत्र पर होता है। आप चाहें तो श्वास की गति को बढ़ा सकते हैं, घटा सकते हैं। यह बिना प्रयत्न के भी आता रहता है। इसलिए यह अनैच्छिक प्रवृत्ति है। इसको घटाया-बढ़ाया जा सकता है, इसलिए यह ऐच्छिक प्रवृत्ति है। श्वास को मंद किया जा सकता है, तीव्र किया जा सकता है। श्वास का संयम किया जा सकता है। उसे पूर्ण रूप से रोका जा सकता है। विधिपूर्वक करना ही सब कुछ जैसे-जैसे श्वास पर नियंत्रण बढ़ता जाता है वैसे-वैसे स्वचालित नाड़ी-संस्थान की प्रवृत्ति में भी परिवर्तन होता चला जाता है। श्वास-संयम की प्रक्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्वास की संख्या को घटाने का मूल्यांकन करना प्रत्येक साधक का कर्तव्य है। दीर्घश्वास, मंदश्वास, सूक्ष्मश्वास-ये तीनों बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । श्वास की क्रिया को बदलना समूचे व्यक्तित्व की धारा को बदलना है। जो श्वास को बदलना नहीं जानता, वह व्यक्तित्व की धारा को भी बदलना नहीं जान पाता। वह व्यक्तित्व के रहस्य को भी नहीं जानता। जिसने यह रहस्य खोजा कि श्वास-परिवर्तन के द्वारा समूचे जीवन को बदला जा सकता है, समूचे व्यक्तित्व को बदला जा सकता है, अध्यात्म के क्षेत्र में वह व्यक्ति सबसे बड़ा वैज्ञानिक था। वह सबसे बड़ा संत था। जो ध्यान करना प्रारम्भ कर देते हैं, परन्तु श्वास पर नियन्त्रण करना नहीं जानते, वे ध्यान में कभी सफल नहीं होते। ध्यान तभी सफल होता है जब वह विधिपूर्वक किया जाए। आज ही एक दम्पति आया। पति-पत्नी दोनों ध्यान करते हैं। उन्हें ध्यान करते दस वर्ष बीत गए। प्रतिदिन नियमित रूप से एक घंटा लगाते हैं। पर वे कह रहे थे कि उन्हें कुछ भी सफलता नहीं मिली। मन वैसा ही चंचल है। एकाग्रता सध नहीं पाती। मैंने पूछा-कौन-सी विधि से ध्यान करते हैं? उन्होंने कहा-कोई विधि नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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