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________________ १६. समाधि : साध्य या साधन अध्यात्म की साधना प्रकाश की साधना है। अन्धकार से दूर होकर मनुष्य प्रकाश में जाना चाहता है। अन्धकार कभी प्रिय नहीं होता। प्रकाश सदा मनुष्य को प्रिय रहा है और उसने अपने जीवन में अधिकतम प्रकाश की दिशा में प्रस्थान किया है। मनुष्य में क्षमता है। नाड़ी-संस्थान जितना मनुष्य का शक्तिशाली है उतना किसी भी प्राणी का शक्तिशाली नहीं है। जितने प्राणी हैं उनमें सबसे अधिक शक्तिशाली नाड़ी-संस्थान मनुष्य को मिला है। इसलिए मनुष्य ही अन्धकार से प्रकाश की ओर जा सकता है। पशु नहीं जा सकता, क्योंकि पशु का नाड़ी-संस्थान उतना कार्यक्षम नहीं है, शक्तिशाली नहीं है। कहा जाता है, देवता भी मनुष्य होना चाहते हैं, मनुष्य होकर साधना करना चाहते हैं। ऐसा क्यों चाहते हैं? उन्हें भी वह नाड़ी-संस्थान प्राप्त नहीं है जिसके माध्यम से साधना की जा सके, विशिष्ट आराधना और नयी उपलब्धियां प्राप्त की जा सकें। मनुष्य के नाड़ी-संस्थान में ज्ञान की शक्ति भी है और कार्य की शक्ति भी है। उसके ज्ञानवाही तन्तु इतने शक्तिशाली हैं कि वह बड़ा ज्ञान उपलब्ध कर सकता है। हमारा ज्ञान बहुत छोटा ज्ञान है। हम मानते हैं कि आज का युग वैज्ञानिक युग है और इसमें ज्ञान का बहुत विकास हुआ है, किन्तु हमारे नाड़ी-संस्थान में ज्ञान के अवतरण की जितनी क्षमता है, उसके अनुपात में कुछ भी अवतरित नहीं हुआ है। बहुत छोटा ज्ञान आज मनुष्य को उपलब्ध है। अतीन्द्रिय ज्ञान तक मनुष्य पहुंच सकता है। समाधि का बहुत बड़ा फल है-अतीन्द्रिय चेतना का जागरण। मनुष्य अतीन्द्रिय चेतना को जगा सकता है और इन्द्रियों की सीमाओं को लांघकर उन सूक्ष्म शक्तियों को देख सकता है, जिन्हें इन्द्रियां कभी भी नहीं देख पातीं। वह इन्द्रिय, मन और बुद्धि-इन सारी सीमाओं को लांघकर शक्ति का साक्षात्कार कर सकता है। क्षमता का उपयोग कितना? हमारे नाड़ी-संस्थान में बड़ी क्षमता है कार्य करने की। मनुष्य इतना बड़ा कार्य कर सकता है जितना कोई नहीं कर सकता। यदि शारीरिक बल की दृष्टि से देखें तो मनुष्य बहुत कमजोर पड़ता है। एक शेर, बाघ, हाथी, बैल या भैंसा भी सामने आ जाये तो मनुष्य की शक्ति बहुत कम होती है। उनकी तुलना में एक कुत्ता भी आदमी को भगा देता है। आदमी की शारीरिक शक्ति निश्चित ही कम होती है। किन्तु नाड़ी-संस्थान का बल ज्यादा होता है। उसी बल के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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