________________
संयम और समाधि १२६
केन्द्र मस्तिष्क में हैं। आंख देखती है पर आंख के संवेदन का केन्द्र आंख के पास नहीं है, वह मस्तिष्क में है। जीभ स्वाद लेती है किन्तु उसका संवेदन केन्द्र मस्तिष्क में है। जीभ, कान, आंख पर नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। किसी भी इन्द्रिय पर नियंत्रण की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है मस्तिष्क और मेरुदंड-इन दो पर नियंत्रण पाने की। सारा नियंत्रण या संचालन मेरुदंड और मस्तिष्क द्वारा होता है। शरीरशास्त्रीय भाषा में इसे 'सेरेब्रो-स्पाइनल सिस्टम' कहते हैं। इसके द्वारा सारा संचालन होता है।
आदमी जीवित है। क्या इस चमड़ी या हड्डियों में जीवन है? क्या इस रक्त और मांस में जीवन है? नहीं, कोई जीवन नहीं है। सारा जीवन है नाड़ी-संस्थान या तंत्रिका तंत्र में। सारा जीवन है ग्रन्थि-तंत्र में। हमें मेरुदंड, मस्तिष्क और ग्रन्थि तंत्र-इन तीनों पर नियंत्रण पाना है। मस्तिष्क पर नियंत्रण होगा तो संवेदनों पर अपने आप नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। मस्तिष्क पर नियंत्रण होगा तो विचार पर अपने आप नियंत्रण हो जाएगा। मेरुदंड पर नियंत्रण होगा तो संवेग या कषाय पर नियंत्रण हो जाएगा। कषाय पर नियंत्रण करने वाला मस्तिष्क नहीं है। नाड़ी-संस्थान के दो विभाग हैं। एक है स्वतःचालित
और दूसरा है मस्तिष्क और मेरुदंड के द्वारा चालित अर्थात् नाड़ी-संस्थान के द्वारा चालित। हमारे जीवन की प्रणाली जो मस्तिष्क और मेरुदंड के द्वारा संचालित होती है, वह ऐच्छिक नहीं होती। किन्तु हमारी बहुत सारी क्रियाएं ऐच्छिक होती हैं। वे स्वशासित तंत्रिका तंत्र द्वारा सम्पन्न होती हैं। आदमी को कुछ भी इच्छा करनी नहीं पड़ती, कुछ भी प्रयत्न करना नहीं पड़ता।
हृदय धड़क रहा है, गति कर रहा है। इसके लिए कुछ भी अपेक्षित नहीं है। आदमी को सोचना नहीं पड़ता। भोजन किया। पाचन क्रिया अपने आप होने लग जाती है। लीवर अपना काम करता है। आमाशय अपना काम करता है और पक्वाशय अपना काम करता है। आदमी को इन क्रियाओं के लिए प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती। सारी क्रियाएं ऑटोमेटिक होती रहती हैं। जितने भी आंतरिक अवयव हैं, इण्टरनल ऑरगन्स हैं और जो ग्रन्थियां हैं उनके लिए आदमी को कुछ भी नहीं करना पड़ता। गुस्सा आता है। आप क्या करेंगे? जब भी एड्रीनल ग्रन्थि का स्राव बढ़ता है, आदमी गुस्से से भर जाता है। मधुमेह की बीमारी हुई और आदमी चिड़चिड़ा हो जाएगा। ये सब स्वतः होते हैं। अनुकंपी-सहानुकंपी तंत्रिकाएं
नाड़ी-संस्थान में तंत्रिका तंत्र की कुछ प्रवृत्तियां ऐसी हैं जो स्वतः संचालित होती हैं और कुछ प्रवृत्तियां मेरुदंड और मस्तिष्क के द्वारा संचालित होती हैं। हाथ उठाना है। आदमी की इच्छा होगी तो हाथ उठेगा, अन्यथा नहीं। बोलना है। आदमी की इच्छा होगी तो बोलेगा अन्यथा नहीं। इसी प्रकार चलना, बैठना,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org