________________
१२२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
में आने लग जाएं। चैतन्य के स्पन्दन भी अज्ञात न रहें। जब आनन्द का वह महास्रोत हमारी पकड़ में आ जाता है तब बाहर का जगत् फीका लगने लग जाता है । हमारी समस्याएं इसीलिए उभरती हैं कि हम बाह्य जगत् में अधिक जीते हैं, आंतरिक जगत् में जीने का प्रयास नहीं करते। जब तक भीतर के दरवाजे नहीं खुलते, तब तक हमारी अपार संपदा का हमें भान नहीं होता । भीतर के शब्द कितने सुखद हैं, भीतर की गंध कितनी मीठी है, भीतर का रूप कितना मोहक है, इनका हमें तब तक अनुभव नहीं होता, जब तक भीतरी दरवाजों और खिड़कियों को नहीं खोल देते। जब तक भीतर के शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श और आनन्द का अनुभव नहीं होता, तब तक आदमी कितना ही पढ़े, ज्ञान करे, सुने, उसका आकर्षण बाह्य जगत् में ही होगा। इस आकर्षक को नहीं तोड़ा जा सकता। धर्म का कितना ही उपदेश सुनें, धर्म के क्रियाकांडों की उपासना करें, किन्तु जब तक भीतर का जागरण घटित नहीं होगा, भीतर की झलक नहीं मिलेगी, तब तक आकर्षण बाहर ही जाएगा, भीतर नहीं । कान की बात कान तक पहुंचकर रह जाएगी और मस्तिष्क की बात मस्तिष्क के तंतुओं को झंकृत कर समाप्त हो जाएगी। वह भीतर तक नहीं पहुंच सकेगी। भीतर का साम्राज्य अनोखा है । उसका अपना सिद्धान्त है, नियम है, अनुभव है । उसकी व्याख्या और परिभाषा दूसरी है ।
संन्यासी ने राजा से कहा- -मुझे सोने की गंध आती है, इसलिए मैं राजमहल में नहीं जाऊंगा, क्योंकि वहां सर्वत्र सोना ही सोना है। राजा ने कहा- सोने में गंध होती ही नहीं, फिर आएगी कैसे? संन्यासी राजा को चमारवाड़े में ले गया। चमड़े की दुर्गन्ध से राजा का सिर फटने लगा । चमारों से पूछा- क्या तुम्हें कभी दुर्गन्ध का अनुभव होता है ? उन्होंने कहा - महाराज ! चमड़े की दुर्गन्ध होती ही नहीं । संन्यासी ने कहा- राजन् ! चमड़े के बीच रहने वाले को कभी बदबू नहीं सताती। इसी प्रकार सोने के मध्य में जीने वालों को सोने की गंध नहीं आती । चमड़े की गंध उसे आएगी जो चमड़े के बीच नहीं रहता । सोने की गंध उसे आएगी जो सोने के बीच नहीं रहता, सोने से दूर रहता है। जो सोने से दूर रहता है, वही सोने की बुराई का अनुभव कर सकता है। जो सोने में रचा-पचा रहता है, वह सोने की बुराई का क्या अनुभव करेगा ?
जो व्यक्ति भीतर के जगत् में प्रवेश नहीं करता, जो अपने चैतन्य का अनुभव नहीं करता, जो अपने भीतर विद्यमान आनन्द, शक्ति और ज्ञान का स्पर्श नहीं करता, उस व्यक्ति को कोई उपदेश बदल नहीं सकता। उस व्यक्ति के आकर्षण - बिंदु को कोई मिटा नहीं सकता। उस व्यक्ति का आकर्षण केन्द्र बाह्य में है और रहेगा। कोई परिवर्तन नहीं आएगा, फिर चाहे उसके लिए कितने ही नियम, सिद्धान्त और उपदेश बना दें। आज का यह ज्वलंत प्रश्न है कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org