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समाधि के सोपान १२३
आज धर्म के द्वारा वह घटित नहीं हो रहा है, जो होना चाहिए। आज इतने धर्म और धर्मगुरु हैं, इतने शास्त्र और इतने धर्मस्थल हैं-फिर भी धर्म का जो परिणाम आना चाहिए वह नहीं आ रहा है, किन्तु सब कुछ विपरीत हो रहा है, यह क्यों?
तीन प्रकार की चेतनाएं हैं-इन्द्रिय-चेतना, मनश्चेतना और बौद्धिक चेतना। आदमी इन तीनों को काम में लेता है और इन तीनों पर पूरा विश्वास करता है। अनुभव की बात यह है कि ये तीनों चेतनाएं मनुष्य को उलझाती हैं, सुलझाती नहीं। इन्द्रिय-चेतना का जागरण होने पर आसक्ति का जागरण होता है। वैराग्य दब जाता है। आदमी इन्द्रिय-चेतना को काम में ले पर उस पर भरोसा न करे। यही बात मनश्चेतना के विषय में है। मन चंचल है, नटखट है। उस पर पूरा भरोसा करने पर वह धोखा दे जाता है। आदमी बुद्धि की चेतना से काम करता हैं वह तर्क का व्यवहार करता है पर उसे यह जान लेना चाहिए कि तर्क भीतर तक नहीं पहुंचता। वह आदमी को उलझा देता है। यह इस दुनिया का सबसे सक्षम शस्त्र है। इससे बड़े-बड़े शस्त्र काटे जा सकते हैं। तर्क हर बात को काट सकता है, फिर वह बात चाहे किसी के द्वारा ही क्यों न कही गई हो। ऐसे बौद्धिक प्रश्न सामने आते हैं जहां हार-जीत का प्रश्न होता है। बुद्धि आखिर बुद्धि है। जो बुद्धि के व्यायाम में निपुण है वह जीत जाता है और जो उस खेल में निपुण नहीं है, वह हार जाता है। आदमी व्यवहार की दुनिया में बुद्धि के सहारे जीत सकता है, पर वह सचाई तक नहीं पहुंच सकता।
पंडित रघुनन्दन शर्मा अलीगढ़ के निवासी थे। वे संस्कृत के प्रकांड पंडित और बेजोड़ आशुकवि थे। एक बार वे रेल से यात्रा कर रहे थे। साथ में उनका एक शिष्य था। पास में एक पंडित बैठा था। शिष्य ने उस पंडित से पूछ लिया-श्रीमदानां किं नामधेयं? आपका नाम क्या है? उस पंडित का अहं फुफकार उठा। उसने कहा-'श्रीमदानां यह अशुद्ध प्रयोग कैसे किया?' पंडित रघुनन्दनजी ने शिष्य की बात को सहारा देते हुए कहा-यह प्रयोग अशुद्ध नहीं है, शुद्ध है। इसका विग्रह इस प्रकार किया जा सकता है-श्रीयः मदः इति श्रीमदः, तेषां श्रीमदानां। पंडित चुप हो गया।
यह तर्क और बुद्धि न जाने कब सत्य को असत्य और असत्य को सत्य ठहरा दे। मेरे जीवन में भी ऐसे अनेक प्रश्न आए हैं जब मैंने भी, दूसरों को लगने वाले अशुद्ध प्रयोगों को, शुद्ध प्रमाणित किया है और वह भी प्रमाणों
और व्याकरण के प्रयोगों के द्वारा। पर मैं बुद्धि और तर्क पर पूरा भरोसा कभी नहीं करता।
हमारी चेतना की पहली मंजिल है-इन्द्रिय चेतना। दूसरी मंजिल है
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