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________________ १२० अप्पाणं सरणं गच्छामि सकता। इन्द्रियजन्य सुख का आकर्षण तब तक बना रहता है जब तक उससे विशिष्ट आनन्द का आकर्षण मन में पैदा नहीं हो जाता। जब इन्द्रिय-विषयों के सेवन से सुख मिलता है तब आदमी वह उपदेश कैसे स्वीकार करेगा कि इन्द्रिय-विषय बुरे हैं, दुःख देने वाले हैं, विकार उत्पन्न करने वाले हैं। यह उपदेश तभी सफल हो सकता है जब व्यक्ति को अपने आन्तरिक सुख का स्पष्ट और साक्षात् अनुभव हो जाए। इस अनुभव का एक क्षण भी प्रियता और अप्रियता के मजबूत बंधन को ढीला कर देता है। तब संवेदन की तीव्रता मंद हो जाती है। संवेदन की तीव्रता का कम होना समाधि का पहला सोपान है, आदि-बिन्दु जब समाधि का यह आदि-बिन्दु प्राप्त हो जाता है तब उसका परिणाम यह होता है कि आदमी में प्रतिक्रिया की शक्ति कम हो जाती है। दुःख-चक्र का अंतिम तत्त्व है-प्रतिक्रिया। तनाव होता है, तनाव से प्रतिक्रिया होती है और प्रतिक्रिया से प्रियता-अप्रियता होती है, फिर अतृप्ति, चोरी, माया, झूठ-यह चक्र चलता रहता है। प्रतिक्रिया तब तक रहती है, जब तक संवेदन की तीव्रता होती रहती है। जब संवेदनों पर नियंत्रण हो जाता है, उनकी तीव्रता समाप्त हो जाती है तब प्रतिक्रिया भी समाप्त हो जाती है। एक व्यक्ति बीज बो रहा था। दूसरे ने पूछा-क्या बो रहे हो? उसने कहा-नहीं बताऊंगा। तब उसने कहा-आज नहीं बताओगे तो क्या? जब बीज उगेगा तब पता लग ही जाएगा कि वह क्या बीज है? वह व्यक्ति बोला-ऐसा बीज बोऊंगा, जो उगेगा ही नहीं। यदि हम ऐसा बीज बोएं जो उग न सके, जो प्रतिक्रिया न कर सके, तो कर्म होगा, प्रतिक्रिया नहीं होगी। उगे और प्रतिक्रिया न हो, ऐसा संभव नहीं है। उगने के साथ प्रतिक्रिया जुड़ी हुई है। प्रतिक्रिया से मूल बीज का पता लग जाता है। पेड़ प्रतिक्रिया है। पेड़ को देखकर बीज को जान लिया जाता है। आम के वृक्ष को देखकर पूछने की आवश्यकता नहीं होती कि यह किस बीज का परिणाम है, प्रतिक्रिया है? भगवान् महावीर ने कहा--जो व्यक्ति श्रोत्र-इन्द्रिय का संयम करता है, वह श्रोत्रेन्द्रिय के निमित्त से (शब्द के निमित्त से) होने वाले कर्मबंध को रोक देता है। शब्द के निमित्त से नया कर्मबंध नहीं होता। जो व्यक्ति जीभ का संयम करता है, वह रस के निमित्त से होने वाले कर्मबंध को रोक देता है। आज के शरीरशास्त्र और मानसशास्त्र भी इसी भाषा में बोल रहे हैं। मानसशास्त्री कहता है-कार्य जितना तीव्र होता है, उसकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही तीव्र होती है। एक्शन जितना तीव्र होगा, रिएक्शन भी उतना ही तीव्र होगा। जब छाप गहरी होती है तब उसका प्रतिफलन या प्रतिक्रिया होती है। रिफ्लेक्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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