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११६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
विषय है। किन्तु वह प्रिय है या अप्रिय, यह जीभ नहीं जान सकती। यह उसका विषय भी नहीं है। वह यह जान सकती है कि यह मीठा है या कड़वा है। परन्तु यह अच्छा है या बुरा, यह वह नहीं जान सकती। क्योंकि पदार्थ न अच्छा होता है और न बुरा, न मनोज्ञ होता है और न अमनोज्ञ, न प्रिय होता है और न अप्रिय । आदमी चाहे पदार्थ को कैसा ही माने, पर वस्तु में यह विभाजन नहीं
होता।
मन से जुड़े हुए हैं संवेदन-युगल
दर्शन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण चर्चा हो रही है। उसका आधार है-अस्तित्ववादी दृष्टिकोण और उपयोगितावादी दृष्टिकोण। जंगल में फूल खिलता है। उसका अस्तित्व निर्विवाद है, पर उसकी उपयोगिता निर्विवाद नहीं है। अस्तित्ववादी दृष्टिकोण से हम कहेंगे-जंगली फूल का अस्तित्व है, पर उपयोगिता उसकी कोई भी नहीं है। वह जंगल में खिलता है और जंगल में ही मुरझा जाता है, नष्ट हो जाता है। अपने आप खिला और अपने आप समाप्त हो गया। किन्तु नगर के उद्यान में खिलने वाले फूल का अस्तित्व भी है और उपयोगिता भी है। उसका अपना अस्तित्व है, उसकी अपनी उपयोगिता है। नगर के फूल का आदमी उपयोग करता है। वह उसे अच्छा-बुरा, प्रिय-अप्रिय, मनोज्ञ-अमनोज्ञ आदि बताता है। ये सारे उपयोगिता के बिन्दु हैं। आंख फूल को देखती मात्र है, घ्राण उसके गन्ध का ग्रहण मात्र करती है और जीभ उसके रस का आस्वादन मात्र करती है। इन इन्द्रियों को कुछ भी ज्ञात नहीं होता कि यह प्रिय है या अप्रिय। अच्छा है य बुरा। यह सब ज्ञात होता है मन को। मन के साथ ये सारे संवेदन-युगल जुड़े हुए हैं। उसके साथ प्रियता-अप्रियता, मनोज्ञता-अमनोज्ञता, अच्छा-बुरा-ये संवेदन-युगल इन्द्रियों के साथ जुड़े हुए नहीं होते, इसीलिए सुन्दर-असुन्दर रूप की मीमांसा आंख नहीं करती, मन करता है। प्रिय-अप्रिय शब्द की मीमांसा कान नहीं करता, मन करता है। मनोज्ञ-अमनोज्ञ रस की मीमांसा जीभ नहीं करती, मन करता है। मुद-कर्कश स्पर्श की मीमांसा शरीर नहीं करता, मन करता है। सुगन्ध-दुर्गन्ध की मीमांसा घ्राण नहीं करता, मन करता है। इसीलिए जब मन के प्रतिकूल कुछ होता है तब कह दिया जाता है-बड़ा बुरा हुआ। जब मन के अनुकूल कुछ होता है तब कह दिया जाता है-बड़ा अच्छा हुआ।
एक प्रोफेसर अपने कमरे में बैठे थे। एक व्यक्ति आकर बोला-'धन्यवाद, आप जैसा परिश्रमी और योग्य प्रोफेसर मैंने नहीं देखा। आपके परिश्रम से ही मेरा लड़का उत्तीर्ण हो सका है। सौ-सौ साधुवाद!' इतने में दूसरा व्यक्ति आकर बोला-'आप जैसा निकम्मा और परिश्रम से जी चुराने वाला प्रोफेसर मैंने कहीं नहीं देखा। आपके कारण ही मेरा लड़का अनुत्तीर्ण हुआ।'
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