________________
११४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
व्यवहार को छोड़कर वे पलायन कर गए हैं। उन्हें न कमाना पड़ता है और न कोई अन्य व्यवसाय करना पड़ता है। सारे दिन यों ही बैठे रहते हैं, जो मन में आया कह देते हैं। उनकी बातों में सार नहीं है। व्यवहार में रहने वाले हम लोग जानते हैं कि सचाई क्या है? हम संघर्षों से जूझते हैं, संघर्षों का जीवन जीते हैं। वास्तविक समस्याओं का सामना करते हैं, उनका समाधान निकालते हैं। हमें ज्ञात है, सुख क्या है, दुःख क्या है। धन के होने से क्या होता है और न होने से क्या होता हैं। प्रतिष्ठा और नाम कमाने के क्या-क्या लाभ है और उनके न होने से क्या-क्या हानि होती हैं। प्रिय शब्दों का क्या असर होता है और अप्रिय शब्दों का क्या असर होता है। सरलता का जीवन जीने से क्या होता है और माया-कपट का जीवन जीने से क्या होता है। बच्चे को दुलारने, थपकी देने और मीठा बोलने से क्या होता है और उसको दुत्कारने और कठोर शब्द बोलने से क्या होता है। हम यह सब जानते हैं, क्योंकि हम वास्तविकता का जीवन जीते हैं। हम व्यवहार के धरातल पर खड़े हैं, अतः व्यवहार को जानते हैं और उसका पग-पग पर पालन करते हैं। सामाजिक धरातल पर जीने वाले व्यक्ति के लिए ये सारी सचाइयां हैं। इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उसके जीवन के प्रत्येक क्षण में ये तथ्य अनुभूत होते रहते हैं। उसके समक्ष संतों की वाणी या अन्यान्य उपदेश कहीं के कहीं रह जाते हैं। वह इन सत्यों को, जो संतों द्वारा अभिव्यक्त किये जाते हैं, कभी वास्तविक मानकर आचरण नहीं कर सकता। समाधि की बात आकाश में त्रिशंकु की भांति लटक जाती है। उस व्यक्ति को कैसे समझाया जाए? क्या समाधि या मानसिक शान्ति के प्रश्न को यों ही छोड़ दिया जाए? क्या ध्यान और धर्म की बात आदमी को न बताई जाए? क्या आदमी को यों ही जीवन बिताने दिया जाए? क्या उसे विषयों के साथ जीने दें और जो उलझनें बढ़ती हैं, दुःख का अन्तहीन चक्र बनता है, क्या आदमी को उसमें ही फंसा रहने दें? ये सारे प्रश्न हैं। समाधि : विज्ञान के संदर्भ में
__ आज के इस वैज्ञानिक युग ने समाधि को समझने के लिए अनेक सुविधाएं प्रस्तुत की हैं। आज से सौ-पचास वर्ष पहले समाधि की बात केवल शास्त्रों के आधार पर ही कही जा सकती थी। सुख बाहर नहीं है, भीतर है-यह बात सिद्धान्त के आधार पर कही जा सकती थी। आज ऐसा नहीं है। आज प्रयोगों के आधार पर इन तथ्यों को प्रमाणित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने ऐसे यंत्रों का आविष्कार किया है जिनसे मनुष्य के विभिन्न संवेदनों का अनुमापन किया जा सकता है और उसे बताया जा सकता है कि वर्तमान क्षण में कौन-से संवेदन सुप्त हैं और कौन-से संवेदन जागृत हैं। इन सारी बातों में विश्वास न करने वाले व्यक्ति को भी प्रमाण प्रस्तुत कर, विश्वास दिलाया जा सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org