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________________ प्रतिक्रिया से मुक्ति और समाधि ११३ निकट के लोग भी दूर जाने लगे। अमृतकौर ने लिखा-बापू यदि संपत्ति रखने का परामर्श नहीं देते तो आज मैं भिखारिन बन जाती। मुझे दर-दर भटकना पड़ता। मैं सचमुच दुःखों से बच गयी। कम-से-कम रोटी की तो मुझे तकलीफ नहीं है। ___ आप मानेंगे कि बापू अपरिग्रह में विश्वास करते थे, फिर उन्होंने परिग्रह रखने का परामर्श कैसे दिया। व्यवहार की भूमिका पर जीने वाला व्यक्ति यही परामर्श दे सकता है। यह सही परामर्श है। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा परामर्श हो नहीं सकता। ___ हम यदि अतीन्द्रिय जगत् की बात को, सूक्ष्म चेतना के स्तर पर घटित होने वाली घटना को चेतन मन के स्तर पर जीने वाले व्यक्तियों को सिखा दें तो वे उलझन में फंस जाएंगे। धर्म का मूल आधार : अनुभव की चेतना धर्म का मूल आधार है-सूक्ष्म चेतना का स्तर। जब तक यह उद्घाटित नहीं होगा, तब तक धर्म का यथार्थ आधार प्रतिष्ठित नहीं होगा और धर्म और कर्म की दूरी, धर्म और व्यवहार की दूरी मिट नहीं पाएगी। आदमी उपवास करता है और जब रात को भूख लगती है तब सारी रात तारे गिनते रहता है। मन में सोचता है-सूरज उगते ही यह खाऊंगा, वह खाऊंगा। यह बनवाऊंगा, वह बनवाऊंगा। वह इतनी कल्पनाएं कर लेता है जितनी कल्पना वह बिना उपवास के नहीं करता। फिर हम कैसे माने कि उपवास करने में सुख है, खाने में सुख नहीं है? इस असंगति या विरोधाभास का निदान क्या है? चिकित्सा क्या है? अध्यात्म के आचार्यों ने इसकी चिकित्सा पद्धति को खोजा। वह है समाधि की चेतना का अवतरण । जब तक इस चेतना का अवतरण नहीं होता, तब तक इन विरोधी प्रश्नों को सुलझाया नहीं जा सकता। समाधि इसलिए समाधान है कि चेतना की उस भूमिका में शब्द काम नहीं करते, अनुभव काम करने लग जाता है। उपदेश की पकड़ क्यों नहीं? सन्तों ने कहा-कस्तूरी मृग के भीतर है, पास है, पर वह उसकी खोज अन्यत्र कर रहा है। सुख आदमी के भीतर है, पर वह उसकी खोज दूसरे स्थान पर कर रहा है। वह भटक रहा है सुख की खोज में। जिन्होंने सत्य का उद्घाटन किया उन्होंने सूक्ष्म चेतना के स्तर पर जाकर उस सत्य को कहा होगा, किन्तु सुनने वालों के लिए इसका कोई अर्थ ही नहीं है। क्योंकि सुनने वालों का स्तर वह नहीं है। वे सुनते समय इसको अच्छा कहेंगे, परन्तु व्यवहार-काल में उन्हें लगेगा कि ये काल्पनिक बातें हैं, माइथोलॉजी है। ये रीयल नहीं हैं, सत्य नहीं हैं। संत भी धुनी होते हैं, जो मन में आया कह देते हैं। वे वास्तविकता को कैसे जानेंगे? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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