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११२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
वाले कितने लोग वास्तव में धार्मिक हैं? बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। आस्तिक और नास्तिक तथा धार्मिक और अधार्मिक में आज अन्तर ही क्या है? दोनों के बीच भेद-रेखा खींचना संभव नहीं है। दोनों चेतन मन के स्तर पर जी रहे हैं। एक आस्तिक भी चेतन मन की भूमिका पर जी रहा है और एक नास्तिक भी चेतन मन की भूमिका में जी रहा है। एक धार्मिक भी उसी भूमिका पर स्थित है और एक अधार्मिक भी उसी भूमिका पर स्थित है। फिर अंतर ही क्या है? जो व्यक्ति चेतन मन की भूमिका पर जीता है, उसके लिए शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श का मूल्य होगा, समाधि का मूल्य नहीं होगा। वह अशब्द, अरूप, अरस, अगंध और अस्पर्श को कभी मूल्य नहीं देगा। उसे शब्दात्मक या विषयात्मक जगत् ही सरस लगेगा। फिर हम क्यों किसी को आस्तिक मानें और क्यों किसी को नास्तिक मानें? उनको आस्तिक या नास्तिक मानने का आधार क्या है? हमने स्थूल मन के आधार पर एक भेद-रेखा खींच ली-अमुक रेखाओं पर चलने वाला आस्तिक और अमुक रेखाओं पर चलने वाला नास्तिक। अमुक रेखाओं पर चलने वाला धार्मिक और अमुक रेखाओं पर चलने वाला अधार्मिक। इस कृत्रिम भेद-रेखा के कारण ही धर्म की तेजस्विता समाप्त हो गयी, आस्तिकता का मूल्य भी समाप्त हो गया। धर्म का भ्रान्त आधार
आज जिस आधार पर धर्म को चलाया जा रहा है, वास्तव में वह धर्म का आधार बनता ही नहीं। चेतन मन या स्थूल मन के स्तर पर जीने वाले लोगों को हम यह कहें-विषय खराब हैं। सब दुःख देने वाले हैं। वे आदमी को उलझन में फंसाते हैं तो वे इन बातों को सुन लेते हैं। सुनने में अच्छी भी लगती हैं। किन्तु जब वे ही व्यक्ति भोजन करने बैठते हैं, सामने अच्छे-अच्छे भोजन दीखते हैं, खाते हैं, स्वादिष्ट लगते हैं तब यह विरोधाभास पनपता है कि विषय खराब नहीं हैं। वे भोगने योग्य हैं। कहा जाता है-परिग्रह पाप का मूल है। पर ये सब बड़े-बड़े परिग्रही मंच पर बैठे हैं, इनका आदर-सम्मान होता है। जहां जाते हैं वहां इनकी बात मानी जाती है। इनकी पूजा-प्रष्ठिा होती है, फिर कैसे माने कि परिग्रह पाप का मूल है। मैंने परिग्रह छोड़ा तो आज दर-दर का भिखारी बना हुआ हूं। कोई पूछता तक नहीं। विचारों में संघर्ष होगा। वह मानेगा-मैंने परिग्रह को छोड़कर भयंकर भूल की है।
राजकुमारी अमृतकौर ने गांधीजी से कहा-मैं अपनी सारी संपत्ति को छोड़कर सेवा-कार्य में लग जाना चाहती हूं। गांधीजी ने कहा-संपत्ति को मत छोड़ो। अपने पास रखकर सेवा में लगी रहो। उसने परामर्श मान लिया। वह कुछ वर्षों तक मिनिस्ट्री में रही। फिर जब वह वहां से मुक्त हो गयी तब सारी परिस्थितियां बदल गयीं। पूछ कम हो गयी। लोगों का घेराव कम हो गया।
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