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प्रतिक्रिया से मुक्ति और समाधि १११
अतीन्द्रिय चेतना : अनुभव चेतना
मनोविज्ञान ने चेतन मन और अवचेतन मन की चर्चा की है, किन्तु भारतीय दार्शनिकों ने इनसे भी सूक्ष्म चेतना के स्तरों की चर्चा की है । अवचेतन मन से परे अतीन्द्रिय मन की भूमिका है। जब व्यक्ति अतीन्द्रिय मन की भूमिका पर चला जाता है तब उसके सारे विरोधाभास मिट जाते हैं । उसकी कथनी और करनी में सामंजस्य स्थापित हो जाता है । अतीन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने वाला व्यक्ति दोहराता नहीं, स्वयं सत्य को जीता है, अनुभव करता है । वह यह कभी नहीं कहेगा कि अहिंसा इसीलिए अच्छी है कि महावीर ने या बुद्ध ने उसकी गुण गाथा गायी है, किन्तु वह अच्छी इसलिए है कि मैंने स्वयं उसका साक्षात् अनुभव किया है । वैसा व्यक्ति अपनी अनुभव की भाषा में बोलेगा, उधार की भाषा में नहीं । किन्तु जब तक व्यक्ति उस अतीन्द्रिय चेतना के स्तर तक नहीं पहुंचता, तब तक वह दूसरों की भाषा की पुनरावृत्ति करता है और उसे दोहराता जाता है। दोहराने वाली चेतना कोई दूसरी है और करने वाली चेतना कोई दूसरी है तो फिर कैसे आशा की जा सकती है कि कथनी और करनी में एकता हो ?
राजनीति के मंच पर तो कथनी और करनी का सामंजस्य हो ही नहीं सकता । कुशल राजनीतिज्ञ वह है जो प्रातः एक बात कहे, मध्याह्न में दूसरी बात कहे और सायं तीसरी बात कहे और फिर यह समझा दे कि मैंने जो सुबह कहा था वह भी सच था, मध्याह्न में कहा था वह भी सच था और सायं कहा था वह भी सच था और अब जो कुछ कहता हूं वह भी सच है । इस स्थिति में कथनी और करनी की एकता का स्वर कैसे प्रतिफलित होगा ?
सामाजिक स्तर पर भी यह एकता संभव नहीं है। जहां व्यक्ति में स्वार्थ होता है वहां एकता की बात नहीं हो सकती ।
धर्म के मंच पर भी कथनी-करनी की एकता का स्वर संभव नहीं है, क्योंकि धर्म के अनुयायी और गुरु भी चेतन मन के स्तर पर जी रहे हैं। वे उस भूमिका का अतिक्रमण कर सूक्ष्म भूमिका पर जाने का प्रयोग नहीं कर रहे हैं । जब तक यह प्रयोग नहीं होगा, तब तक अवीतरागता बाधक बनी रहेगी और कथनी-करनी का भेद मिटेगा नहीं ।
आस्तिक : नास्तिक
आज के लोग आस्तिकता की बात करते हैं । किन्तु वास्तव में वे आस्तिक हैं कहां? जो व्यक्ति सूक्ष्म भूमिका की चेतना पर नहीं जाता वह कभी आस्तिक नहीं हो सकता । जो व्यक्ति सूक्ष्म चेतना की भूमिका पर आरोहण नहीं करता वह कभी धार्मिक नहीं हो सकता । लोग स्वयं सोचें। अपने आपको आस्तिक मानने वाले कितने लोग यथार्थ में आस्तिक हैं? अपने आपको धार्मिक मानने
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