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________________ ११० अप्पाणं सरणं गच्छामि रस, गंध आदि की प्रिय अनुभूति ही सार लगती है। इसके अतिरिक्त सार कुछ भी नहीं लगता। मनुष्य चाहे अपने आन्तरिक भावों को छिपाकर कह दे-'धर्म और सत्य जीवन का सार है, अहिंसा और ब्रह्मचर्य जीवन का सार है।' चेतन मन के स्तर पर जो ये बातें कहेगा तो यह स्पष्ट है कि यह उसकी अपनी अनुभूति नहीं होगी, उधार ली हुई बात होगी। क्योंकि उस व्यक्ति ने ऐसा सुना है, विभिन्न धर्म-ग्रन्थों में पढ़ा है। यह सार ज्ञानगत है, अनुभवगत नहीं है। उन व्यक्तियों और शास्त्रों के प्रति उसकी श्रद्धा है इसलिए वह इन बातों को दोहराता जाता है, किन्तु जैसे ही वह चेतन मन के स्तर पर एक पैर रखता है वह यह कहने लगता है-पैसा सार है, पदार्थ सार है, खाना-पीना सार है, शेष सारा असार कथनी-करनी एक क्यों नहीं? बहुत सारे लोग इस उलझन में हैं कि उनकी कथनी और करनी एक क्यों नहीं है? वे कहते हैं वैसा कर क्यों नहीं पाते? कथनी और करनी की दूरी मिटनी चाहिए। राजनीति के लोग और सामाजिक लोग भी कहते हैं कि कथनी और करनी की दूरी मिटनी चाहिए। धर्म के मंच से भी यही उद्घोष सुना जाता है। सारे साधु-संन्यासी भी यही कहते हैं, किन्तु यह प्रश्न कभी समाहित नहीं होता। आज यह प्रश्न जैसा है वैसा ही हजार वर्ष पूर्व था। इसका समाधान नहीं हो सकता। जब तक हमारी सभ्यता, संस्कृति और जीवन का आधार स्थूल चेतना रहेगी, चेतन मन की प्रवृत्तियां रहेंगी, तब तक यह प्रश्न कभी समाहित नहीं होता। इस प्रश्न को केवल समाधि की भूमिका पर ही समाहित किया जा सकता है। हमें हमारी सभ्यता, संस्कृति और जीवन के आधार को ही बदलना होगा और एक नयी पीढ़ी का निर्माण करना होगा, जो केवल चेतन मन के स्तर पर ही न जीए किन्तु अवचेतन मन के स्तर पर भी जीना सीखे। जिस दिन पूरी सभ्यता में अवचेतन मन के आधार पर जीने की बात आ जाएगी, आदमी सूक्ष्म मन के स्तर पर जीने लग जाएगा, उस दिन कथनी-करनी की दूरी अपने आप मिट जाएगी। वीतराग : अवीतराग हमारे जीवन की दो अवस्थाएं हैं-वीतराग अवस्था और अवीतराग अवस्था। जब तक आदमी अवीतराग अवस्था में जीता है, राग-द्वेष की अवस्था में जीता है, उसकी कथनी और करनी में अन्तर होगा। भगवान् महावीर ने कहा-अवीतराग या छद्मस्थ व्यक्ति का यह एक लक्षण है कि उसकी कथनी और करनी में अन्तर होगा। जो वीतराग होगा वह जैसा कहेगा, वैसा करेगा, जैसा करेगा, वैसा कहेगा। कोई अन्तर नहीं होगा। वीतराग होने का अर्थ है-चेतन की सूक्ष्म भूमिका में प्रवेश पा जाना। यह अतीन्द्रिय मन की भूमिका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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